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समाधानः- .. गुरुदेवने भवका अभाव कैसे हो उसका (मार्ग बताया)।
मुमुक्षुः- भरत क्षेत्रके जीवोंको तो .. अभी देखने नहीं मिलता, परन्तु ... देखने मिला है। ये तो महाभाग्य है। जीवंत..
समाधानः- गुरुदेव इस भरत क्षेत्रमें पधारे, भरत क्षेत्रके महाभाग्य! ऐसी वाणी बरसायी और चैतन्यदेवका स्वरूप बताया। देव-गुरु-शास्त्र कैसे होते हैं? चैतन्य कैसा है? आत्मा कैसा है? यह सब बताया। सच्चे देव-गुरु-शास्त्रका स्वरूप बताया।
समाधानः- ... भवका अभाव हो, वह करने जैसा है। गुरुदेवने मार्ग बताया है, भवका अभाव होनेका। संसारका स्वरूप ही ऐसा है। जीवने ऐसे तो अनन्त जन्म- मरण किये हैं। अनन्त जन्म-मरण करते-करते मनुष्य भव मिलता है। अनन्त भव जीवने देवके किये, नर्कके किये, निगोदके किये, तिर्यंचके किये, मनुष्यके किये। इसमें यह मनुष्य भव दुर्लभता-से मिलता है। उसमें गुरुदेव मिले तो आत्माका कर लेने जैसा है।
आत्मा भिन्न और यह शरीर भिन्न है। शरीर और आत्मा, जब उसका आयुष्य पूरा होता है तब भिन्न पडते हैं। आत्माका कहीं नाश नहीं होता है, आत्मा तो शाश्वत है। इसलिये आत्मा भिन्न है, वह भिन्न कैसे पडे? भिन्न तो उसका आयुष्य पूरा होता है तब पडता ही है, परन्तु पहले-से ही ऐसा भेदज्ञान करके आत्मा कैसे भिन्न पडे, पहले तो यह करने जैसा है।
आत्मा भिन्न और अंतर आत्मामें स्वानुभूति कैसे हो? उसका भेदज्ञान कैसे हो? गुरुदेवने वह मार्ग बताया है, वह करने जैसा है। जीवको अनन्त कालमें सब प्राप्त हुआ है, एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। एक जिनवर स्वामी नहीं मिले हैं। भगवान मिले तो स्वयंने पहचाना नहीं है। इसलिये भगवान कैसे पहचानमें आये? गुरु कैसे पहचानमें आये? आत्मा कैसे पहचानमें आये? वह जीवनमें करने जैसा है। सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त हो? स्वानुभूति कैसे हो? उस जातका रटन, मनन वह करने जैसा है। देव- गुरु-शास्त्रकी महिमा और आत्मा कैसे पहचानमें आये, वह करने जैसा है।
बाकी जन्म-मरण, जन्म-मरण तो संसारमें होते ही रहते हैं। जो मनुष्य भव धारण करता है, जो जन्मता है, उसका मरण होता है। इसलिये आयुष्य पूरा होने पर सब