जीव चले जाते हैं। अतः आत्माको कैसे भिन्न करना और भेदज्ञान करना, आत्माका ज्ञान और आनन्द सब आत्मामें है। उसे पहचान लेना। करना वह है।
समाधानः- ... गुरुदेव राजकोट बहुत बार पधारते।
मुमुक्षुः- पूरा लाभ लेते थे, मातुश्री हमेशा लाभ लेते थे।
समाधानः- देह और आत्मा भिन्न पडते हैं। दिखता है कि आत्मा चला जाता है, शरीर पडा रहता है। इसलिये प्रथम-से ही आत्माका भेदज्ञान कर लेना कि अन्दर आत्मा भिन्न जाननेवाला है, ये विकल्प भिन्न है, उससे भी आत्मा भिन्न है, वह कैसे जाननेमें आये? उसकी पहचान कैसे हो? उसकी स्वानुभूति कैसे हो? ऐसी भावना करने जैसी है। जीवनमें यह एक अपूर्व है, बाकी कुछ अपूर्व नहीं है संसारमें।
शान्ति रखनी। ऐसे जन्म-मरण संसारमें होते हैं। राग आये उतना दुःख होता है, परन्तु मनको बदल देना, शान्ति रखनी। अनन्त भवोंमें कितनोंको स्वयं छोडकर आया है, स्वयंको छोडकर दूसरे चले जाते हैं। ऐसा कितने भवोंमें करता आया है, होता आ रहा है। इसलिये शान्ति रखनी। करनेका यह है।
मुमुक्षुः- आप कहते हो तब बराबर समझमें आता है, .. समझमें आता है। फिर एकदम जब आपत्ति आती है या दुःख आये, तब बदल जाता है।
समाधानः- करनेका वह है, भूलने जैसा नहीं है। गुरुदेवने कहा है, वही करनेका है। उसका पुरुषार्थ करने जैसा है, भूलने जैसा नहीं है। ऐसे प्रसंगोंमें अधिक स्मरण आये, आत्माकी ओर अधिक वैराग्य आये और वह करने जैसा है। वही पुरुषार्थ करने जैसा है। गुरुदेवने खूब उपदेश दे-देकर अपूर्व मार्ग बताया है।
मुमुक्षुः- गुरुदेवके प्रताप-से...
समाधानः- सबको मृत्युके समय शान्ति रखती है और सुनानेवालेको भी शान्ति रहती है। गुरुदेवके प्रतापसे छोटे-बडोंको कितनोंको ऐसे संस्कार पड गये हैं कि ऐसा प्रसंग आवे तब शान्ति रहती है।
मुमुक्षुः- सब भाईओंको-बहनोंको एक साथ भाव आया कि अपने माताजीके दर्शन कर आते हैं, उसके बाद सब बिछडेंगे।
समाधानः- गुरुदेवकी वाणी अपूर्व थी। गुरुदेव आत्मा बता रहे थे। फिर भी अन्दर जाननेवाला भिन्न है। पुरुषार्थ यह भेदज्ञान करना है।
मुमुक्षुः- आप कहते हो, हम समझते हैं, फिर भी..
समाधानः- आत्मा भिन्न जाननेवाला है उसका स्वभाव पहचानना कि यह जाननेवाला है, वह मैं हूँ और उस जाननेवालेमें ही सब भरा है। जाननेवालेमें अनन्त शक्ति और अनन्त गुण और आनन्द सब जाननेवालेमें भरा है। ये सब विकल्पकी जाल आती