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भिन्न हूँ, ऐसा मानता है। किसीका मरण हो तो मान लेता है कि यह जड है और चेतन आत्मा है। विकल्पसे मान लेते हैं, परन्तु शरीरसे एकत्वबुद्धि तो बहुत है।
समाधानः- रागके कारण। शरीरसे भी कहाँ छूटा है और विकल्प-से भी नहीं छूटा है। यथार्थ छूटे तो दोनों-से छूटे। विकल्प-से भी नहीं छूटा है और शरीर-से भी नहीं छूटा है। शरीर सो मैं और मैं सो शरीर, उसमें अपना ज्ञायक उसे भिन्न नहीं दिखता है। परन्तु उसका प्रयत्न करे कि ये जो जाननेवाला है, जो-जो विकल्प हुए सब विकल्प चले गये, लेकिन उनके बीच जो जाननेवाला है वह जाननेवाला मैं हूँ। वह जाननेवाला शरीरमें नहीं आता है। शरीर तो जड है, वह कहाँ जानता है। शरीरमें रोग हो तो शरीर कहाँ जानता है कि मुझे रोग हुआ है कि ये रोग अच्छा नहीं है, निरोगता अच्छी और रोग खराब, ऐसा शरीर नहीं जानता। जाननेवाला अन्दर है। उसे राग हो कि यह रोग अच्छा नहीं है, मुझे दुःखरूप है। ये निरोगता अच्छी है, मुझे सुखरूप है। जाननेवालेमें स्वयं राग-द्वेष करता है। शरीर कुछ नहीं जानता है, वह तो जड है।
मुमुक्षुः- दुःख आवे तब इसके साथ एकत्वबुद्धि हो जाती है।
समाधानः- उस वक्त तैयारी रखनी चाहिये। गुरुदेव कहते हैं न कि सुना उसे कहे कि मौके पर ज्ञान हाजिर होना चाहिये। मैं आत्मा भिन्न शाश्वत है, यह शरीर भिन्न है। इस प्रकार अंतरमें-से ऐसी भावना (हो), यथार्थ तो बादमें होता है, परन्तु पहले ऐसी भावना तैयार करे, ऐसी रुचि तैयार करे, ऐसे विचार करे। यथार्थ भेदज्ञान हो उसे तो क्षण-क्षणमें हाजिर होता है कि मैं तो भिन्न जाननेवाला हूँ। परन्तु ऐसा विचार करे, भावना करे तो भी अच्छा है। ऐसी रुचि करे।
ये शरीर बेचारा तो कुछ जानता नहीं। जाननेवाला अन्दर राग-द्वेष (करता है)। उससे भी मैं (भिन्न हूँ), राग-द्वेष भी मेरा स्वरूप नहीं है। परन्तु जाननेवाला राग- द्वेषमें जुडता है। शरीर तो कुछ जानता नहीं, वह तो जड है। लेकिन वह स्वयं मान लेता है कि ऐसा शरीर हो, ऐसा हो, वैसा हो, वह मैं हूँ। ऐसा चले, बोले, वह सब मैं हूँ, ऐसा मानता है। ऐसी भाषा निकले वह मैं हूँ। वह सब मैं-मैं मानता है। भाषा भी जड है, सब जड है, लेकिन स्वयं अन्दर एकत्वबुद्ध कर रहा है। स्वयं प्रयत्न करके विचार करना चाहिये कि मैं तो शाश्वत हूँ।
इतने साल बीत गये, उसमें जाननेवाला ऐसे ही विद्यमान है, विकल्प आकर चले गये। लेकिन मैं तो जाननेवाला भिन्न हूँ, मैं तो अन्दर भिन्न हूँ। ये शरीर तो जड बेचारा कुछ जानता नहीं। वह कुछ नहीं जानता है। सोया हो तो निंदमें अनेक जातकी जाल आती है, शरीर सोया हो तो स्वप्नमें मैं कहीं जाता हूँ और आता हूँ, वह