२७० सब (चलता है)। अन्दर ऐसे संस्कार है। जाननेवाला है, उसमें जो राग-द्वेष होते हैं, उससे भिन्न पडनेकी जरूरत है। शरीर तो जड है। ये हाथ-पैरा कहाँ कुछ जानते हैं। जाननेवाला अन्दर राग-द्वेखकी कल्पना खडी करता है।
मुमुक्षुः- कल्पनामें भी ज्ञान ही परद्रव्य पर..
समाधानः- हाँ, उसका लक्ष्य पर-ओर जाता है, अन्दर एकत्वबुद्धि है।
मुमुक्षुः- तीर्थंकर भगवानको ही ॐ ध्वनि छूटती है?
समाधानः- हाँ, तीर्थंकर भगवानको ॐ ध्वनि छूटती है, केवली भगवानको ॐ ध्वनि छूटती है। जिसको केवलज्ञान हो उन सबको ॐ ध्वनि छूटती है। कोई केवलज्ञानी भगवान जिसे वाणी हो उन्हें ॐ ध्वनि छूटे। कोई केवली भगवानको वाणी न निकले तो न छूटे। केवलज्ञानी भगवानको ॐ ध्वनि छूटती है। तीर्थंकर भगवानको ॐ ध्वनि छूटती है। तीर्थंकर भगवानको समवसरणकी रचना होती है, सब होता है। केवली भगवानको समवसरणकी रचना हो या न हो, परन्तु सब सभा होती है। केवली भगवानको भी ॐ ध्वनि छूटती है।
मुमुक्षुः- तीर्थंकर गोत्र.. उसके बाद..
समाधानः- हाँ, जो तीर्थंकर होते हैं, उन्हें पहले शुभभाव होता है। उसमें पुण्यबन्धता है, तीर्थंकर गोत्र। वह भी पुण्य है। लेकिन वह उन्हें हेयबुद्धि-से (होता है) कि यह आदरणीय नहीं है। सम्यग्दृष्टि हो उसको ही तीर्थंकर गोत्र बन्धता है, कोई मुनिको बन्धता है, कोई सम्यग्दृष्टिको (बन्धता है), लेकिन वह मानता है कि यह शुभराग है, मेरा स्वरूप नहीं है। उसे भावना आ जाती है कि अहो! ऐसा धर्म! ऐसा चैतन्यका स्वरूप कोई अदभुत! यह स्वरूप सब कैसे समझे? सर्व जीव करु शासन ..। सब जीव यह धर्म कैसे प्राप्त करे? ऐसा करुणा भाव उत्पन्न होता है, उसमें उसे पुण्यबन्ध हो जाता है। लेकिन यह पुण्यभाव आदरणीय नहीं है। ऐसे उसे हेयबुद्धि-से पुण्य बन्ध हो जाता है। तीर्थंकर गोत्र बान्धते हैैं और उसका उदय आता है। भगवानका जन्म होता है तब इन्द्र आते हैं, पंच कल्याणक होते हैं। केवलज्ञान होता है तब समवसरणकी रचना होती है। भगवान गर्भमें आये, भगवान जन्मे तब इन्द्र आकर उनका जन्म कल्याणक करते हैं। पंच कल्याणकमें भगवान जन्मते हैं।
मुमुक्षुः- साधारण जीव ... तो उसे ऐसा कोई भाव नहीं होता। तो फिर उसका...
समाधानः- साधारण जीव हो उसे...?
मुमुक्षुः- भव्य जीव साधारण हो, वाणी सुनकर तिर जाय। सबको तीर्थंकर गोत्रका शुभभाव नहीं होता है न?
समाधानः- सबको तीर्थंकर गोत्र नहीं बन्धता। साधारण जीव हो तो वाणी सुनकर..