Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 230.

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अमृत वाणी (भाग-५)

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ट्रेक-२३० (audio) (View topics)

समाधानः- ... तो भी बारंबार उसीको याद करते रहना। एकत्वबुद्धि अनादिकी है तो बाहर लग जाता है तो भी बारंबार उसे अपनी ओर दृढ करना। महिमा और लगन।

मुमुक्षुः- वैराग्य और ज्ञान दोनों साथमें (होते हैं)।

समाधानः- हाँ, ज्ञान-वैराग्य दोनों साथमें (होते हैं)।

मुमुक्षुः- वैराग्य पहले आता है न? बादमें ज्ञान होता है न?

समाधानः- दोनों साथमें होते हैं। स्वयंने अपना अस्तित्व ग्रहण किया कि मैं ज्ञायक हूँ और परसे भिन्न पडता है। ज्ञान और वैराग्य दोनों साथमें होते हैं।

मुमुक्षुः- शुभाशुभ तो चलते ही रहते हैं।

समाधानः- शुभाशुभ अनादिका जुडा है। उससे भिन्न पडे, भेदविज्ञान करे। मूलमें- से बादमें जाता है, पहले उसका भेदज्ञान करे। स्वभाव पहचाने कि मैं भिन्न हूँ और ये भिन्न है। अपना अस्तित्व पहचाने और मैं पर-से भिन्न, ऐसे विरक्ति। ज्ञान और वैराग्य साथमें होते हैं।

मुमुक्षुः- दृष्टि बदलनी है।

समाधानः- दृष्टि बदलनी है।

समाधानः- .. जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं और उनकी प्रतिमाएँ शाश्वत हैं। नंदिश्वरमें, मेरु पर्वतमें, देवलोकमें बहुत जगह (हैं)। रत्नके मन्दिर और रत्नकी प्रतिमा हैं। भगवान मानो बोले या बोलेंगे, ऐसे दिखे। ऐसे रत्नकी प्रतिमाएँ होती हैं। एक वाणी नहीं होती, बाकी सब है। मानों समवसरणमें बैठे हों।

मुमुक्षुः- अष्टाह्निकाकी पूजा करनेमें अपनेको क्या लाभ होता है?

समाधानः- भगवानकी पूजासे भगवानकी महिमा, जिनेन्द्र देवकी महिमा आये। भगवान वीतराग हैं, वीतरागी देवकी महिमा आये। आठ दिन देव करते हैं। और यहाँ मनुष्य भी करते हैं। उसमें एक जातकी जिनेन्द्र भगवानकी महिमा है। जगतमें सर्वसे जिनेन्द्र देव सर्वोत्कृष्ट हैं। इसलिये जिनेन्द्र भगवानका जितना करे उतना कम है। उसमें नित्य नियममें श्रावकोंको पूजा होती है। उसमें अष्टाह्निकामें तो आठ दिन देव करते