हैं और मनुष्य भी करते हैं।
भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं। श्रावकोंको देव, गुरु और शास्त्रकी पूजा, भक्ति गृहस्थाश्रममें होती है। स्वयं अपनेको पहचानता नहीं है, परन्तु भगवान जो सर्वोत्कृष्ट हैं, भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचानता है। भगवानका स्वरूप यदि उसके ख्यालमें आये, महिमा करते-करते, अपना ध्येय हो तो स्वयंको पहचाननेका कारण बनता है। यदि अपना ध्येय हो तो। नहीं तो पूजा,.. भगवानकी महिमा आये, भगवानका स्वरूप पहचाननेका कारण बनता है। जगतमें महिमा करने योग्य हो तो जिनेन्द्र देव हैं। प्रत्येक आदमी संसारमें सांसारिक प्रसंग और उत्सव मनाते हैं, परन्तु भगवानका उत्सव मनाये वह तो सर्वोत्कृष्ट है। गृहस्थाश्रममें अन्य प्रसंग-से भगवानका उत्सवन मनाना, वह श्रावकोंके लिये ऊँचा है, उत्तम है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- देवोंकी तो बहुत शक्ति होती है न, इसलिये..
मुमुक्षुः- अवधिज्ञान..
समाधानः- हाँ, उन्हें तो अवधिज्ञान होता है।
मुमुक्षुः- हम जाकर आ गये।
समाधानः- देवलोकमें भी समझे बिना जाकर आये। गुरुदेवने कहा न कि तू भगवानका स्वरूप पहचान। समझे बिना ओघे-ओघे किया। पुण्य बन्ध हो। जाकर आया जीव, बहुत बार जाकर आया। परन्तु समझे बिना जाकर आया। भगवान किसे कहते हैं, वह समझे बिना जाकर आया। सच्ची रुचि और सच्ची जिज्ञासा, भगवान पर जो अंतर-से भावना आये और भक्ति आये, ऐसे भावसे नहीं गया। सम्यग्दर्शन बिना गया और भावभक्ति बिना, अंतरकी रुचि बिना गया। इसलिये पुण्य बन्ध हुआ।
समाधानः- .. ध्वनि छूटनेका काल और वहाँ एक क्षण पहले तो गौतमस्वामी... वहाँ इन्द्र देवका रूप लेकर जाता है तो आश्चर्य होता है। देवलोक... कौन है? द्रव्य कितने होते हैं? आपने कहाँ-से समझा? और कौन है? उसे आश्चर्य लगा। पात्रता है न। नहीं तो स्वयं मानों सर्वज्ञ है, ऐसा मानते थे। मेरे जैसा कोई नहीं है। शिष्योंको पढाते थे। ये कौन है, ऐसा कहनेवाला? आश्चर्य लगा। थोडे प्रश्नोंमें आश्चर्य लगा। देखने आते हैं। आपके गुरु कौन हैं? मुझे दर्शन करना है। दूर-से देखा। सरल हृदय है और पात्र है, दूसरा कोई विचार नहीं आता। मानस्तंभ देखकर आश्चर्यमें डूब जाते हैं। ये कौन है? मैं तो ऐसा समझता था कि मैं सर्वज्ञ हूँ। ये कौन है? मानस्तंभ देखकर (ऐसा लगता है), ये मानस्तंभ! ऐसे कौन भगवान है कि जिसके आगे ऐसी रचना होती है। ये क्या है? आश्चर्यमें डूब जाते हैं। उस आश्चर्यमें उन्हें आत्माका आश्चर्य