२७४ (लगा) और उसमें भेदज्ञान हो गया। यह सब कैसा? मानते थे अद्वैत और भेदज्ञान हो गया।
मानस्तंभको देखकर सम्यग्दर्शन हो गया। एक क्षणमें पलट गया। लंबा पुरुषार्थ नहीं करना पडा। क्योंकि अन्दर तैयारी थी। विचार कर-करके सब वेदान्तका बिठाया था। रुचि इस धर्म ओरकी परन्तु बैठा था दूसरा। परन्तु हृदय इतना सरल था कि क्षणमें पलट गये। नहीं तो इस कालमें तो बैठा हो, विपरीत अभिप्राय निकालना मुश्किपल है। वे तो क्षणमें पलट गये। अभी तो भगवानकी वाणी नहीं छूटी नहीं है वहाँ हो गया। आगे-आगे समवसरणमें चलते जाते हैं पात्रता बढती जाती है। ... आगे गये वहाँ तो मुनिदशा और जहाँ भगवानकी ध्वनि छूटी तो चार ज्ञान (प्रगट हो गया)। कितनी देरमें सब परिवर्तन! कैसी आत्माकी योग्यता!
मुमुक्षुः- देवोंकी लायकात..
समाधानः- उसके लिये ध्यान करने बैठे या आराम-से बैठे, ऐसा कुछ नहीं। मात्र देखते जाते हैं और पलट जाते हैं। सबको पढानेवाले। तीन भाई थे। इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति। उसमें मुख्य ये हैं।
मुमुक्षुः- लायकात कैसी!
समाधानः- आत्मा अंतर्मुहूर्तमें पलटता है कैसे! मैं जानता हूँ और मैं सर्वज्ञ (हूँ)। मैं मानता था वह सब जूठा है, ऐसा हो गया। मैं सर्वज्ञ हूँ ऐसा मानता था, और वह जूठा? इसलिये मेरा सब जूठा। ऐसा अन्दर विश्वास आ गया। मैं सर्वज्ञ नहीं हूँ। सर्वज्ञ भगवान कोई अलग हैैं, ऐसा लगता है। मेरे पास नहीं है। उसमें एक जूठा है तो सब जूठा है। ऐसे उनकी पात्रता बदल गयी। अन्दर लायकात है न! परिणति बदल गयी। क्षणमें मेरा जूठा है, ऐसे परिणति बदल गयी। देख-देखकर अन्दर-से पात्रता ऐसी है कि भेदज्ञान और अन्दर सब (हो गया)।
द्रव्य कितने? तत्त्व कितने? ऐसा पूछा न (तो लगा) ये सब क्या पूछा? ऐसा नहीं कहा कि तेरा जूठा है। विचारमें पड गये। कैसा परिवर्तन हो गया! लंबा विचार किया या भगवान कहते हैं और मैं विचार करुँ फिर मैं बिठाऊँ, या मैं ध्यान करुँ, चौथा आये, फिर छठवाँ-सातवाँ आया, ऐसा कुछ नहीं। वैसे तो उनको धर्म-ओर वृत्ति थी। परन्तु धर्मकी ओर हो तो अभी पंचमकालमें हो तो विपरीत अभिप्राय घुस गये हो। स्वयंको बडा मान लिया हो। ... दिव्यध्वनिका धोध बहा। ... उपादान- निमित्तका सम्बन्ध ऐसा है। ध्वनि ध्वनिके कारण (छूटी)। गौतमस्वामीकी योग्यता उनके कारण, गणधर गणधरके कारण, भगवान भगवानके कारण। आनन्दसे बरसे। वाणी नहीं छूटती थी उसमें-से वाणी छूटी तो आनन्द-आनन्द हो गया। भरतक्षेत्रमें सबको आनन्द