Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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अनन्त कालमें कोई अपूर्व रुचिने स्वयंने नहीं की है। सुना है लेकिन अपूर्व रुचि नहीं की है। शास्त्रमें आता है न? तत्प्रति प्रीति चित्तेन, वार्तापि श्रुताः। वह वार्ता भी स्वयंने सुनी तो भावि निर्वाण भाजनम। भविष्यमें निर्वाणका भाजन (है)। लेकिन वह वार्ता कैसे सुनी? कोई अपूर्व रुचिसे सुनी होनी चाहिये। वह अपूर्व रुचि स्वयंको हो तो वह प्रगट हुए बिना नहीं रहती।

अपूर्व रुचिसे स्वयंने सुना नहीं है, इसलिये अनन्त कालमें सुना लेकिन वह चला गया। अपूर्व रुचि स्वयंकी हो, अन्दर दृढ निश्चय हो कि आत्मा प्रगट करना ही है और उतना पुरुषार्थ हुआ न हो तो वह रुचि उसके साथ आये बिना नहीं रहती। रुचि उसे काम आती है। ऐसे गुरुदेव मिले, इतनी अन्दरकी रुचि हो, ऐसे गुरुदेव मिले, ऐसा उपदेशका धोध बहाया, कोई अपूर्वता बताकर अंतरमें स्वयंको लगी हो तो हुए बिना नहीं रहता।

मुमुक्षुः- नियमसारमें कलश है कि कारण और कार्य दोनों शुद्ध है। उसका क्या अर्थ होता है? कारण भी शुद्ध है और कार्य शुद्ध है।

समाधानः- कौन-सा कलश आता है कारण-कार्यका? कारण दृष्टि जो प्रगट हुयी वह भी शुद्ध है। यदि कारण शुद्ध है तो उसका कार्य भी शुद्ध है। कारण- कार्य दोनों शुद्ध हैं। कारण जो द्रव्य स्वरूप आत्मा वह कारण है, वह भी शुद्ध है। उसकी दृष्टिकी पर्याय प्रगट हुयी वह भी शुद्ध है। कारण अशुद्ध हो और कार्य शुद्ध हो, ऐसा नहीं बनता। कारण-कार्य दोनों शुद्ध होते हैं।

मुक्तिका मार्ग जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र है वह भी शुद्ध है और मुक्तिकी पर्याय प्रगट होती है, वह भी शुद्ध है। द्रव्य स्वरूप आत्मा है वह भी शुद्ध है। उसकी दृष्टि प्रगट होती है, विषय भी शुद्ध है, उसकी पर्याय शुद्ध है। और मुक्तिका मार्ग जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र प्रगट होता है वह मुक्तिका कारण है। तो वह भी शुद्ध है। उसकी पर्याय प्रगट होती है वह भी शुद्ध है। कारण भी शुद्ध है और कार्य भी शुद्ध है। द्रव्य अपेक्षासे भी शुद्ध है, पर्याय अपेक्षासे भी शुद्ध है। .. वह भी शुद्ध है, मुक्तिकी पर्याय होती है वह भी शुद्ध है। द्रव्यस्वरूप आत्मा भी शुद्ध है। उसकी जो दृष्टि होती है, वह भी शुद्ध है।

मुमुक्षुः- कारण-कार्य द्रव्य-पर्यायमें भी है और कारण-कार्य पर्याय-पर्यायमें भी है।

समाधानः- हाँ, पर्याय-पर्यायमें है। मुक्तिका मार्ग और मुक्ति-पूर्ण मुक्ति। वह भी कारण-कार्य। और द्रव्य कारण, पर्याय कार्य। वह भी शुद्ध है। द्रव्यमें भी द्रव्य और पर्याय उसमें भी कारण-कार्य है। पर्याय-पर्यायमेें भी कारण-कार्य होता है। ऐसा भी व्यवहार होता है। मुक्तिका मार्ग कारण और मुक्तिकी पर्याय कार्य, ऐसा भी होता है।