Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२८२ शुभभाव भी बहुत किये। परन्तु वह तो पुण्यबन्धका कारण बना।

आचार्यदेव कहते हैं कि हम तो आगे बढनेको, शुद्धात्मा तीसरी भूमिकाकोग्रहण करनेको (कहते हैं), पीछे गिरनेको नहीं कहते हैं। शुभको छोडकर अशुभ करनेको नहीं कहते हैैं। परन्तु शुभ-से (भिन्न) तीसरी भूमिका, शुभभाव-से (भिन्न) तीसरी भूमिका शुद्धात्मा, उसको ग्रहण करो। वह अमृतस्वरूप है उसको ग्रहण करो। शुभभाव शरणरूप नहीं है, बीचमें आता है।

मुमुुक्षुको देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा, भक्ति, मन्द कषाय मुमुक्षुको होता है। देव- गुरु-शास्त्रकी महिमा होती है, परन्तु शुद्धात्माका ध्येय होना चाहिये। मैं शुद्धात्माको कैसे (ग्रहण करुँ)? मेरा आत्मा न्यारा है, ऐसी श्रद्धा होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! जैन धर्म ही सत्य है, ऐसा आपने किस प्रकार-से ... किया?

समाधानः- जैन धर्म ही सत्य है, क्योंकि जैन धर्ममें यथार्थ स्वरूप है। अनेकान्त स्वरूप (है)। आत्मा कोई अपेक्षासे नित्य है, कोई अपेक्षासे अनित्य है, कोई अपेक्षासे एक, कोई अपेक्षासे अनेक (है)। ये जो जैन धर्ममें जो स्वरूप है,.... जैन धर्म कोई वाडा नहीं है, यथार्थ मुक्तिका मार्ग है। वह यथार्थ मुक्तिका मार्ग बताता है। दूसरे अन्य-अन्य मतोमें कोई मात्र क्षणिक मानता है, कोई क्रियामें धर्म मानता है, कोई एकान्त नित्य, कूटस्थ मानता है, कोई ऐसा मानता है। ऐसा वस्तुका स्वरूप नहीं है।

वस्तुका स्वरूप भीतरमें विचार तो कोई अपेक्षासे आत्मा नित्य (है)। स्वभाव द्रव्य अपेक्षासे नित्य है, पर्याय अपेक्षासे अनित्य है। उसमें गुण अनेक हैं, तो गुण कहीं खण्ड-खण्ड, खण्ड-खण्ड नहीं है। एक वस्तुमें अनन्त गुण है। ऐसा जो भगवानने वीतराग मार्गमें कहा है, वैसा अन्यमें नहीं है। यही मार्ग सत्य है। आत्मामें अशुद्धता तो पर्यायमें है। वास्तविक द्रव्य तो शुद्ध है। तो कोई कहता है कि एकान्त शुद्ध है। पर्यायमें अशुद्धता है और द्रव्य अपेक्षासे शुद्ध है। ऐसा जो जैन दर्शनमें जो वस्तुका स्वरूप भगवानने बताया है, ऐसा कीधर भी नहीं है।

उसका रहस्य गुरुदेवने प्रगट किया है कि वस्तुका स्वरूप ऐसा ही है। और आत्मामें स्वानुभूतिमें आत्माका अस्तित्व ग्रहण करो, उसका भेदज्ञान करो। उससे आत्मामें स्वानुभूति होती है। ऐसा जैन धर्ममें है, वैसा कीधर भी नहीं है। यथार्थ यही मार्ग है। अनेकान्त स्वरूप-द्रव्य अपेक्षासे नित्य, पर्याय अपेक्षासे अनित्य। यह जैनदर्शनमें है, ऐसा किसीमें नहीं है। कोई एक-एक, एक-एक वस्तुको कहता है। कोई क्षणिक सर्वथा, कोई सर्वथा नित्य, कोई सर्वथा अनेक, कोई कहता है, परको जानता है, अपनेको नहीं जानता है, कोई कहता है, अपनेको जानता है, परको नहीं जानता है, ऐसे अनेक मतमतांतर