Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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होता है, मुनिका ध्यान उग्र होता है।

मुमुक्षुः- ध्यानकी प्रक्रिया तो दोनोंकी एक ही है न?

समाधानः- प्रक्रिया उसमें उग्र है। विधि एक है, परन्तु मुनिकी ध्यानकी दशा उग्र ध्यान दशा है। उसमें एक संज्वलनका कषाय अल्प है। और इसको (-सम्यग्दृष्टिको) तो प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी सब है। इसलिये उग्र लीनता, इनको उग्र लीनता है। गृहस्थाश्रममें उतनी उग्रता नहीं है। अंतर्मुहूर्तमें बाहर आता है। और मुनिकी दशा बहुत उग्र है। उग्र है। ध्यानकी दशा... विधि एक है। भेदज्ञानकी धारा दोनोंको है। उसकी लीनता विशेष है। स्वरूपमें स्थिर होते हैं वह लीनता विशेष है। सम्यग्दृष्टिको ऐसी लीनता नहीं है। मुनिकी लीनता विशेष है। मुनि तो बाहर आवे तो एक अंतर्मुहूर्तसे ज्यादा टिक नहीं सकते। भीतरमें चले जाते हैं। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें ऐसी भूमिका कोई अलग है। (सम्यग्दृष्टि) तो बाहर आये तो टिक सकता है। (मुनिराज) बाहर आवे तो टिक नहीं सकते। भीतरमें चले जाते हैं। उनकी निरंतर ध्यानकी दशा ऐसी चलती है, चलते- फिरते बाहर आवे तो उपयोग टिकता नहीं है, भीतरमें चला जाता है। ऐसी ध्यानकी दशा निरंतर चलती है। और बादमें कोई उग्रता हो जाय तो केवलज्ञान प्रगट करे ऐसी उग्रता हो जाती है। ध्यानकी दशा उनको निरंतर चलती है। छठवें-सातवें गुणस्थानमें ... सम्यग्दृष्टिको ऐसी उग्रता नहीं है। ज्ञायककी धारा और भेदज्ञान उसको रहता है। उसकी ध्यानकी दशा मुनि जैसी उग्र नहीं होती। मुनिकी उग्रता अलग है।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानमें इतनी ताकत है, सम्यग्दृष्टिके भेदज्ञानमें इतनी ताकत है कि उसकी श्रद्धा अविचलित बनी रहती है।

समाधानः- हाँ, श्रद्धा अविचलित बनी रहे। ज्ञायककी धारा न्यारा-न्यारा, वह सहज न्यारा रहता है। उसको विचार नहीं करना पडता। मैं न्यारा चैतन्य हूँ, वह चैतन्यकी कोई शान्ति वेदता है। ऐसी ताकत है, उसकी परिणतिमें। परन्तु मुनि जैसी लीनता नहीं है। निर्विकल्प दशा, मुनिकी भाँति अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें नहीं होती है।

मुमुक्षुः- दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयका विपाक। तो मुनिके दर्शनमोहनीय तो नहीं है, चारित्रमोहनीय है। तो दोनों विपाक क्यों लिये?

समाधानः- कोईको दर्शनमोहका विपाक... किसीको क्षायिक होवे, किसीको क्षयोपशम होवे, ऐसा है न। इसलिये दर्शनमोह, चारित्रमोह दोनों लिये। कोई सत्तामें होवे तो उसके विपाकके छोड देता है। दर्शनमोह, चारित्रमोह। पूर्ण वीतरागता .. किसीको सत्तामें होवे, किसीको क्षायिक होवे, किसीको क्षयोपशम होवे, इसलिये लिया है।

समाधानः- .. दूसरोंको कहनेके बजाय अपना कर लेना।

मुमुक्षुः- बराबर, सही बात है, बिलकूल बराबर है। उसके लिये तो है यह