२९६ जीवन।
समाधानः- अपना मनुष्य जीवन सार्थक कर लेना।
मुमुक्षुः- बहुत मुश्किल-से मिलता है। आपके चरणोंमें, बस उसमें सार्थकता है। आपका हाथ ऊपर हो, बस! और कुछ नहीं (चाहिये)।
समाधानः- मेरी तबियत ऐसी रहती है। सब आते हैं, जाते हैं। मुमुक्षुः- इतना मिलता है वही बहुत है। समाधानः- जीवनमें आत्माका कल्याण करना, बस! वही है। एक हेतु आत्माका लक्ष्य। कैसे अंतर आत्माको पहचानूँ। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और आत्माका ध्येय रखना। भीतरमें न्यारा आत्मा कैसे पीछानूँ? और श्रुतका स्वाध्याय। साथमें वह करना। एक आत्म प्रयोजन, दूसरा कोई प्रयोजन नहीं। वही महिमावंत है, उसीमें सब भरा है। बाहरमें सब निःसार तुच्छ-तुच्छ है। आत्मामें सबकुछ भरा है। आत्माको नहीं पीछाना। अनंत कालमें सब क्रिया करी, सबकुछ किया, परन्तु आत्माको पीछाना नहीं। वह आत्मा, गुरुदेवने मार्ग बताया। पंचमकालमें कोई जानता नहीं था। कोई क्रिया करे, ऐसा करे उसमें धर्म मान लेते हैं।