Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

३०८

पहले शुरूआत सच्ची समझने करनी है। यथार्थ ज्ञान हो तो यथार्थ चारित्र हो। बिना ज्ञानके बाहर-से चारित्र ले लेना, वह तो समझे बिना चलना है। कहाँ चलना है? मार्ग तो खोज। अन्दर यथार्थ श्रद्धा और यथार्थ ज्ञान करके, यहाँ जाना है, उसका ज्ञान करके अन्दर रमणता कर तो चारित्र (होता है)। बाहर-से चारित्र नहीं आता है। बाह्य क्रियाओंमें चलने लगा। लेकिन वह स्थूल दृष्टि है, अंतर दृष्टि नहीं की। मुनि होकर त्याग किया, उपवास किये, व्रत धारण किये, सब किया, कंठस्थ किया, पढ लिया, लेकिन आत्मा अन्दर कैसे भिन्न है, वह जाना नहीं। सब रट लिया, पढ लिया, शास्त्र धोख लिये, परन्तु अंतरमें आत्मा भिन्न और ये भिन्न है, ऐसा अंतरमें (जाना नहीं)। अंतरमें-से प्रगट करना, अंतरमें-से भिन्न होना, वह कुछ नहीं किया।

... जीवको अनन्त बार प्राप्त हुआ है। परन्तु देवमें-से पुनः परिभ्रमण होता है। सिद्ध दशा तो अंतरमें (होती है)। विचार दशा हो, अंतरमें-से ज्ञान ज्ञानरूप परिणमे, ज्ञायक ज्ञायकरूप परिणमे, एक ज्ञायक स्वभावमें सब भरा है, उसमें अनन्त शक्ति भरी हैं, वह अंतरमें-से प्रगट होती है।

मूल स्वभाव, मूल जो तना है-आत्म स्वभाव-चैतन्य-उसे ग्रहण नहीं किया और सब शाखा और पत्तोंको पकड लिया। शाखा-पत्तोंसे... मूलमें जाकर उसमें ज्ञान-वैराग्य रूपी जलका सिंचन करे तो उसमें-से वृक्ष पनपे। मूल बिनाके शाखा और पत्ते सूख जायेंगे।

.. ध्यान करनेमें विकल्प-विकल्प मन्द करे, फिर शून्याकार जैसा (हो जाता है)। आत्माको ग्रहण किये बिना ध्यान भी सच्चा नहीं होता।

समाधानः- ... जैसा सत पूरा द्रव्य है, अनन्त गुण और पर्याय-से भरा हुआ, द्रव्य-गुण-पर्याय... ऐसे सत नहीं है। उसका कार्य भिन्न, उसका लक्षण भिन्न है। इसलिये उसे भी सत उस तरह कहनेमें आता है। द्रव्य सत, गुण सत, पर्याय सत। और अहेतुक अर्थात वह अकारणयी है। अहेतुक है। वह स्वयं स्वतंत्र है। स्वयं अपना कार्य करनेमें स्वतंत्र है। स्वयं अपने स्वभावमें स्वतंत्र है। ऐसे उसकी स्वतंत्रता है, ऐसे उसका सत है। परन्तु वह सत ऐसा नहीं है कि जैसे द्रव्य सत, गुण-पर्याय-से भरा पूरा द्रव्य सत है, ऐसे गुण-पर्याय, ऐसा सत नहीं है। लक्षण-से और काया-से उस प्रकार- से वह सत है।

मुमुक्षुः- दो पदाथाकी भाँति दो सत भिन्न-भिन्न नहीं है।

समाधानः- हाँ। वैसे सत नहीं है। दो पदार्थ भिन्न-भिन्न सत हैं, वैसा सत नहीं है। उसके लक्षण-से, उसके कार्य, उनके कार्य भिन्न-भिन्न है, उस अपेक्षासे उन्हें सत कहनेमें आता है।