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मुमुक्षुः- उस अपेक्षासे सतको भिन्न किया जाता है।
समाधानः- उस प्रकार-से भिन्न पडते हैं। और लक्षण एवं कार्य, उसके स्वयंके हैं। कोई उसे करता नहीं। स्वयं उसके कार्य है। तो भी उसे द्रव्यका आश्रय रहता है। द्रव्यकी परिणति, स्वयं स्वभाव-ओर लक्ष्य करे, दृष्टि करे तो उस ओरकी परिणति होती है। पर्याय होती है स्वतंत्र, लेकिन वह द्रव्यके आश्रय-से रहती है।
अखण्ड द्रव्यका जैसा सत है ऐसी दृष्टि कर तो वैसी तेरी परिणति होगी। परन्तु वह द्रव्य ऐसा है कि द्रव्य अनन्त गुण और अनन्त पर्याय-से भरा है। द्रव्य ऐसा नहीं है कि द्रव्यमें कोई शक्ति नहीं है या द्रव्य कोई कार्य नहीं करता है, ऐसा नहीं है। द्रव्यमें अनन्त शक्ति, अनन्त गुण और अनन्त पर्यायें हैं। ऐसा कहना चाहते हैं। ऐसा कहकर पदार्थ अलग नहीं करना चाहते हैं। द्रव्यका स्वरूप बताते हैं, ऐसा कहकर।
द्रव्य सत, गुण सत, पर्याय सत ऐसा कहकर द्रव्यका स्वरूप बताते हैं कि द्रव्य ऐसा है। वह द्रव्य कैसा है? कि उसमें अनन्त गुण हैं और अनन्त पर्याय हैं। और वह सतरूप है। वह द्रव्य स्वयं ही वैसा है। ऐसा कहनेका आशय है। उसमें दो टूकडे नहीं करना चाहते, लेकिन द्रव्यका स्वरूप बताते हैं। द्रव्यमें जो गुण हैं, वह सतरूप है, पर्याय सतरूप है। सत अर्थात उसका अस्तित्व है। लेकिन उसका अस्तित्व ऐसा नहीं है कि द्रव्यका अस्तित्व अनन्त शक्तियाँ-अनन्त गुणोंसे भरपूर है, ऐसा गुणका सत और पर्यायका सत ऐसा नहीं है। वह तो एकका है, एक गुणका, एक पर्यायका है। वह सत ऐसा नहीं है। इस प्रकार द्रव्य सत, गुण सत, पर्याय सत कहकर द्रव्यका स्वरूप बताते हैं। भिन्नता करनेको नहीं बताते हैं, परन्तु ऐसी दृष्टि और स्वयंको ऐसी महिमा आये कि यह द्रव्य अनन्त गुण और अनन्त पर्यायों-से भरा है। ऐसा तू यथार्थ ज्ञान कर। ज्ञान करके उस ओर दृष्टि और उस जातकी परिणति प्रगट कर। ऐसा कहनेका आशय है।
तेरेमें अनन्त गुण और तेरेमें अनन्त पर्याय हैं। और वह सतरूप है। तू द्रव्य ऐसा नहीं है कि एक ऐसा पिण्ड है कि जिसमें कोई कार्य नहीं है, जिसमें भिन्न-भिन्न जातकी पर्यायें नहीं है, ऐसा नहीं है। तेरेमें अनेक जातकी पर्यायें और अनन्त जातके गुण भरे हैं, उसका तू ज्ञान कर। ऐसा कहना चाहते हैं। अतः प्रत्येक सत भिन्न- भिन्न है, वह एक-एक टूकडे हैं, ऐसी दृष्टि कर, ऐसा नहीं कहना चाहते हैं। परन्तु उसका तू ज्ञान कर। तेरा द्रव्य अनन्त गुण और अनन्त पर्याय-से भरा है और वह अनन्त गुण और अनन्त पर्याय सतरूप हैं। सत अर्थात तेरा द्रव्य जैसे अनन्त शक्तियों- से भरा है ऐसा सत नहीं, अपितु एक-एक मर्याेदित सत है। एक ज्ञानलक्षण जाननेका, ऐसे। एक-एक अंशका है। पूरा अंशीका सत है, वैसा अंशका सत नहीं है। और