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भेद अन्दर है, पर्यायके भेद पडते हैं, उन सबका ज्ञान कर।
मुमुक्षुः- उन सबको जैसा है वैसा जान।
समाधानः- जैसा है वैसा तू जान। तो तुझे वीतराग दशाकी प्राप्तिा होगी, तो तेरी साधक दशा आगे बढेगी। दृष्टि हुयी इसलिये सब परिपूर्ण हो गया, ऐसा नहीं है। अभी तेरी दशा अधूरी है। वीतराग दशाकी प्राप्ति (नहीं हुयी है), पूर्णता अभी बाकी है। दृष्टि भले पूर्ण पर है, लेकिन अभी अधूरा है।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- उसका मतलब कि जैसा द्रव्य सत है, वैसे गुण एवं पर्याय उस जातके सत नहीं है। इसलिये वैसा सत नहीं है, एक ही सत है। उस अपेक्षा-से एक ही सत है। लक्षण... जो शास्त्रमें आता है, वह अस्तित्व रखता है, गुण और पर्याय अपना अस्तित्व रखता है, इसलिये सत।
मुमुक्षुः- इस अपेक्षा-से शास्त्रमें द्रव्य सत, गुण सत और पर्याय सतका.. समाधानः- वह अपना अस्तित्व रखता है। गुण और पर्याय। बाकी द्रव्य-गुण- पर्याय मिलकर पूरा द्रव्य (है)। द्रव्य जैसा अखण्ड सत है, वैसे गुण और पर्याय वैसे स्वतंत्र सत नहीं है जगतमें, ऐसा। और दृष्टिमें मैं पूर्ण वीतराग स्वरूप हूँ, वह दृष्टिका प्रयोजन है। और पर्यायकी साधना अभी बाकी है, इसलिये उसमेंं वीतरागताका, पूर्णताका प्रयोजन, केवलज्ञान पर्यंत पहुँचना, वह प्रयोजन है। गुण और पर्याय...