३१२
मुमुक्षुः- दृष्टिमें पूर्णताका लक्ष्य और प्रयोजनमें ऐसा कहे कि अभी न्यूनता है, पूर्णता प्राप्त करनी है।
समाधानः- अभी न्यूनता है, चारित्र बाकी है-लीनता बाकी है। द्रव्यपने अभेद है, परन्तु अभी पर्याय स्व-ओर पूर्णरूपसे शुद्ध नहीं हुयी है। शुद्धताकी पर्याय जो प्रगट होनी चाहिये वह पूर्ण शुद्ध (नहीं है)। द्रव्य और गुण अनादिअनन्त एकसाथ है। पर्याय तो क्षण-क्षणमें, क्षण-क्षणमें पलटती रहती है। पर्याय जो विभाव-ओर थी, वह स्वभाव- ओर गयी, इसलिये आंशिक शुद्ध तो हुयी, परन्तु अभी लीनता बाकी है। दृष्टिके साथ जुडी जो पर्याय है वह पर्याय उतनी शुद्ध हुयी, परन्तु अभी लीनताकी बाकी है।
मुमुक्षुः- उतना भेद पडता है।
समाधानः- हाँ, उतना भेद पडता है। नहीं तो तुरन्त केवलज्ञान हो जाना चाहिये। स्वानुभूतिमें तुरन्त केवलज्ञान नहीं हो जाता। स्वानुभूति अंशरूप है। केवलज्ञान, वीतरागता तुरत्न नहीं होती। किसीको अंतर्मुहूर्तमें हो जाती है, वह अलग बात है। तो भी उसमें क्रम तो पडता ही है।
मुमुक्षुः- .. द्रव्यका अवल्मबन है...
समाधानः- पुरुषार्थकी कचास है। किसीकी परिणति ऐसी है कि अंतर्मुहूर्तमें एकदम पुरुषार्थ उत्पन्न हो जाता है। किसीकी परिणति ऐसी है कि धीरे-धीरे उत्पन्न होती है। जो अपनी ओर मुडा, स्वानुभूति प्रगट हुयी, उसे अवश्य वीतराग दशा होनेवाली ही है। किसीको धीरे होती है, किसीको जल्दी होती है।
मुमुक्षुः- कम-ज्यादा समय तो गौण है।
समाधानः- हाँ, कम-ज्यादा (समय गौण है)। पुरुषार्थकी उतनी परिणतिकी क्षति है, पुरुषार्थकी क्षति है।
मुमुक्षुः- ...पुरुषार्थकी मुख्यता..
समाधानः- पुरुषार्थकी मुख्यता रखनी।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- कोई ऐसा कहे कि क्रमबद्धमें ऐसा होनेवाला था। परन्तु पुरुषार्थकी