Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 237.

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ट्रेक-२३७ (audio) (View topics)

समाधानः- ... ज्ञात हो जाय तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव योग्य लगे तो कहे, अन्यथा नहीं भी कहे। स्वयं समझ ले।

मुमुक्षुः- ज्ञानी कहते ही नहीं है न। ज्ञानिओं कहते नहीं है।

समाधानः- जिसमें लाभ दिखे उसमें कहे, न दिखे (तो नहीं कहे)। .. तो कुछ कहे भी, प्रसंग न दिखे तो न कहे। पुण्यकी कचास कहो, जो भी कहो, करना स्वयंको है। वह मालूम पडे या न पडे, स्वयंको तो स्वयंकी तैयारी करनी है। मालूम पडे तो भी स्वयंको पुरुषार्थ-से करना है। मालूम पडे तो भी स्वयंको पुरुषार्थ करना है और न मालूम पडे तो भी स्वयंको पुरुषार्थ करना है।

मुमुक्षुः- उसमें थोडा जोर आये।

समाधानः- तो भी पुरुषार्थ तो स्वयंको करना है। मालूम पडे तो बैठे नहीं रहना है। पुरुषार्थ तो स्वयंको ही करना है। पुरुषार्थ करनेका है, ऐसा कोई कहे तो भी भले और उस वक्त ... बाकी पुरुषार्थ तो स्वयंको करना है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- .. सबके लिये सुगम पंथ तैयार कर दिया है। उस पंथ पर चलने- से सब मोक्षपुरीमें जा सके, ऐसा पंथ सबको प्रकाशित कर दिया है, ऐसा पंथ गुरुदेवने बता दिया है। उस पंथ पर जाने-से सब मोक्षपुरीमें जा सकते हैं। तबियत ऐसी है, लेकिन सब मन्दिरके दर्शन.. गुरुदेव विराजते थे, वह बात अलग थी।

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! हमारे प्रश्न तो वही हैं, परन्तु आप जब उत्तर देते हो तब हमें वह सब उत्तर नये-नये लगते हैं। हमारा यह प्रश्न है कि आबालगोपाल सर्वको सदा काल स्वयं ही स्वयंको अनुभवमें आ रहा है, ऐसा समयसारकी १७-१८ गाथाकी टीकामें आचार्यदेव कहते हैं। वहाँ आचार्यदेवका आशय क्या है? वहाँ ज्ञानका स्वपरप्रकाशक स्वभाव बताना चाहते हैं या शिष्यकी जो दृष्टिकी भूल है, वह समझाना चाहते हैं?

समाधानः- उसमें तो दृष्टिकी भूल कहते हैं। आबालगोपालको अनुभवमें आ रहा है, उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि वह अनुभूति, उसे आनन्दकी अनुभूति हो रही है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। उसका अर्थ ऐसा है कि आत्मा स्वयं अस्तित्व रूप-से,