Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 238.

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ट्रेक-२३८ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आंशिक आचरण हो...

समाधानः- आंशिक आचरण पहले नहीं होता है। पहले श्रद्धान-ज्ञान हो तो ही आचरण होता है। तो ही आचरण यथार्थ होता है।

मुमुक्षुः- श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक।

समाधानः- श्रद्धा-ज्ञानपूर्वक आचरण यथार्थ होता है। आंशिक आचरण होता है।

मुमुक्षुः- श्रद्धाकी प्रधानता, ऐसा? जैनदर्शनमें श्रद्धान मुख्य तत्त्व है।

समाधानः- श्रद्धानकी प्रधानता है।

मुमुक्षुः- भले ज्ञान द्वारा श्रद्धान होता है।

समाधानः- ज्ञान बीचमें आता है। बीचमें आता है, इसलिये प्रथम ज्ञान करना, ऐसा आता है। श्रद्धा करता है, उसमें ज्ञान बीचमें आता है। अतः प्रथम ज्ञान करना, ऐसा कहनेमें आये। परन्तु श्रद्धा यथार्थ हो तो ही मुक्ति मार्गका प्रारंभ होता है।

मुमुक्षुः- ज्ञान करना, वह भी समकिती-ज्ञानीके समीप रहकर यथार्थ ज्ञान हो सके। धर्मात्माका योग हो तो ही उसको उस जातके संस्कार दृढ हो सके।

समाधानः- गुरुदेवने जो मार्ग बताया, उस मार्गको स्वयं ग्रहण करे। गुरुदेवका आशय समझे, उस आशयको ग्रहण करे, वैसी स्वयं तैयारी करे तो उसे मार्ग प्रगट होता है। उसकी समीपता अर्थात समीपता यानी अंतरमें उनकी समीपताको ग्रहण करनी। ऐसा अर्थ है।

मुमुक्षुः- भावकी निकटता।

समाधानः- हाँ, भाव-से निकटता ग्रहण करनी। अनादि कालसे देव-गुरु सच्चे नहीं मिले हैं। इसलिये उसे यथार्थ ज्ञान नहीं हुआ है। परन्तु उपादान तैयार हो तो निमित्त मौजूद होता ही है।

मुमुक्षुः- निमित्तको खोजना, ऐसा नहीं?

समाधानः- निमित्त उसे प्राप्त हो ही जाता है, उनका सान्निध्य प्राप्त हो ही जाता है। समीपता यानी उनका सान्निध्य, समीपता प्राप्त हो जाती है। मुमुक्षुको ऐसे भाव आये बिना रहते ही नहीं। देव-गुरु-शास्त्रकी समीपता कैसे प्राप्त हो? उनका सान्निध्य