Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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हो तो... उसके पहले जो ज्ञान है, उसे यथार्थ नाम नहीं दे सकते। सम्यग्दर्शन हो तब उस ज्ञानको यथार्थ कहते हैं। उसके पहले व्यवहार बीचमें आता है। जाननेके लिये ज्ञान आता है, परन्तु प्रतीति यथार्थ हो, तभी ज्ञानको सम्यकज्ञान नाम कहनेमें आता है।

मुमुक्षुः- सर्व गुणोंकी शुद्धि होती ही जाती है। शुद्धिकी वृद्धि होती जाती है। ऐसी बात आये, वह कैसे होती है?

समाधानः- केवलज्ञान होनेके बाद नहीं। केवलज्ञान तो पूर्ण हो गया।

मुमुक्षुः- ज्ञानगुण तो होता है। आज जैसा गुण है, उससे कल ज्यादा हो।

समाधानः- केवलज्ञानमें ऐसा नहीं होता। वह तो साधक दशामें है। सम्यग्दर्शन होनेके बाद शुद्धिकी वृद्धि होती है। उसकी भूमिका बढती जाय। उसे चतुर्थ गुणस्थान हो, फिर पाँचवा होता है, लीनता बढती जाय, ऐसे-ऐसे ज्ञान, दर्शन, चारित्रकी निर्मलता, अनन्त गुणोंकी निर्मलता बढती जाती है। सम्यग्दर्शन-यथार्थ दृष्टि हुयी इसलिये उसमें जब चारित्र प्रगट होता है, फिर सर्व गुणोंकी शुद्धि होती है। सम्यग्दर्शन-से ही शुद्धि होती है।

सर्वगुणांश सो सम्यग्दर्शन। उसे शुद्धि हुयी। फिर विशेष आगे बढता है तो चारित्र दशा आती है। पाँचवी भूमिका, छठ्ठी-सातवीं मुनिदशा आये। इसलिये उसकी अधिक शुद्धि हुयी। उसे वीतराग दशाकी प्राप्ति (हुयी)। पूर्ण वीतराग नहीं है, वीतरागताकी वृद्धि हुयी। फिर मोहका, रागका क्षय होकर अंतर वीतराग दशा पूर्ण वीतराग हो, तब उसे संपूर्ण होता है। केवलज्ञान होता है। वीतराग होता है इसलिये केवलज्ञान होता है। केवलज्ञान होता है, इसलिये सर्व गुण संपूर्णरूपसे प्रगट हो गये। फिर समय-समयमें उसकी जो परिणति होती है, उस परिणतिमें वृद्धि-वृद्धि होती है, ऐसा नहीं।

मुमुक्षुः- केवलज्ञान होने पर सर्व गुण खील गये न?

समाधानः- केवलज्ञान होता है तो सर्व गुण परिपूर्ण हो गये। फिर जो परिणमन होता है, वह एकके बाद एक, अनन्त गुण स्वयं शुद्धिरूप परिणमते ही रहते हैं। वीतरागरूप परिणमते रहते हैं। उसका स्वभाव ऐसा है कि पारिणामिक स्वभाव है। इसलिये वह अनन्त काल पर्यंत परिणमता रहता है आनन्दरूप, ज्ञानरूप, परन्तु उसका नाश नहीं होता है या कम नहीं हो जाता। वह परिणमता रहता है, एकरूप परिणमता रहता है। उसमें तारतम्यता अगुरुलघु स्वभावके कारण हो, परन्तु वह एकरूप है। उसमें व- वृद्धि नहीं कहते। केवलज्ञान हुआ इसलिये पूर्ण हो गया।

मुमुक्षुः- तो फिर उसे अगुरुलघुकी दृष्टि-से कैसे कहते हैं?

समाधानः- उसे वृद्धि नहीं होती। वह तो एकरूप परिणमता है। तारतम्यता (होती है)। वह तो पारिणामिकभाव है। उसकी वृद्धि-हानि तो उसका स्वभाव है। जैसे हीरामें