३३२ नहीं है। उसका वेदन चैतन्यमें होता है, उसकी स्वानुभूतिका वेदन होता है, उसकी वीतराग दशाका वेदन होता है। इसलिये उस विभाव-से (जैसे) भिन्न पडना है, वैसे इससे भिन्न नहीं पडना है। इस अपेक्षा-से कहा था।
मुमुक्षुः- राग है वह भिन्न होकर चला जाता है और इसकी अन्दरमें अधिक- अधिक वृद्धि होती है।
समाधानः- वृद्धि होती है। अन्दर चैतन्यमें शुद्धात्मामें पर्याय प्रगट होती है। परन्तु उस पर दृष्टि देने-से या उसका आश्रय करने-से वह प्रगट नहीं होता। आश्रय द्रव्यका ले तो ही वह शुद्धात्माकी पर्याय प्रगट होती है। इसलिये दृष्टि तो एक पूर्ण पर ही रखनी है। पर्याय पर या गुण पर या उसमें रुकना, उस पर दृष्टि नहीं रखनी है। परन्तु ज्ञानमें रखना है कि ये पर्याय चैतन्यके आश्रय-से प्रगट होती है। वह कहीं जडकी है ऐसा (नहीं है)। ज्ञान यथार्थ करना। दृष्टि पूर्ण पर रखनी, परन्तु ज्ञान यथार्थ हो तो उसकी साधकदशाकी पर्याय यथार्थपने प्रगट होती है।
ज्ञान भी वैसा ही हो सर्व अपेक्षा-से, उसकी दृष्टिमें ऐसा ही हो कि मैं पूर्ण ही हूँ, अब कुछ करना नहीं है, तो उसमें भूल पडती है। दृष्टि पूर्ण पर होती है, द्रव्य पर, परन्तु ज्ञानमें ऐसा होता है कि मेरी पर्याय अभी अधूरी है। वह सब ज्ञानमें हो तो साधक दशा प्रगट होती है। नहीं तो उसकी दृष्टि जूठी होती है। सर्व अपेक्षा- से पूर्ण ही हूँ और राग एवं अपूर्ण पर्याय, वह राग तो मुझ-से भिन्न है, परन्तु होता है चैतन्यकी पुरुषार्थकी कमजोरी-से। वह सब ख्यालमें रखे तो पुरुषार्थ उठता है। उसमें आनन्द दशा, वीतराग दशा सब प्रगट होता है। पहले दृष्टिकी अपेक्षा-से दो भाग होते हैं। ज्ञान उसका विवेक करता है। गुरुदेवने अनेक प्रकार-से समझाया है। गुरुदेवने परम उपकार किया है। सब अपेक्षाएँ गुरुदेवने समझायी हैं।
मुमुक्षुः- दूसरा प्रश्नः- आत्मा ज्ञानस्वरूप है और उसका लक्षण ज्ञान। तथा आत्मा अनुभूतिमात्र है। उसमें तो मात्र वेदनरूप लक्षणसे पहचान करवायी है। तो पहचान करनेके लिये कौन-सी पद्धति सरल है?
समाधानः- अनुभूति लक्षण यानी उसमें ज्ञान लक्षण कहना चाहते हैं। अनुभूति अर्थात वेदनकी अपेक्षा यहाँ नहीं है। वह तो ज्ञान लक्षण है। ज्ञान लक्षण है वह असाधारण है। ज्ञान लक्षण-से ही पहचान होती है। अनुभूति अर्थात ज्ञान लक्षण कहना चाहते हैं। ज्ञान लक्षण-से ही उसकी पहचान होती है। ज्ञान लक्षण उसका ऐसा असाधारण लक्षण है कि उससे चैतन्यकी पहचान होती है। इसलिये अनुभूतिमें वेदन अपेक्षा नहीं लेनी है। वेदन तो वर्तमानमें उसकी दृष्टि विभाव तरफ है। वहाँ-से स्व-ओर मुडना। ज्ञान लक्षण-से पहचान होती है।