Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

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समाधानः- विकल्पमें आयगा, लेकिन भीतरमें-से परिणति तो हुयी नहीं है। विकल्प तो बीचमें आता है। परन्तु ऐसी श्रद्धा होनी चाहिये कि भीतरमें-से मेरा स्वभाव कैसे प्रगट होवे? ऐसी भावना होनी चाहिये। विकल्प तो बीचमें आता है। विकल्प-से होता नहीं है। विकल्प-से कुछ होता नहीं है, वह तो बीचमें आता है। परन्तु भीतरमें- से ऐसी परिणति प्रगट करनी चाहिये। परिणतिका प्रयास करना चाहिये। ऐसे विकल्प तो आते हैं। विकल्प-से होता (नहीं)। विकल्प तो है, तो क्या करना? भीतरमें तो गया नहीं है। तो विकल्प तो बीचमें आता है। विकल्प-से मैं भिन्न हूँ, ऐसी श्रद्धा करनी चाहिये। मैं भिन्न हूँ, ये भी विकल्प होता है। मेरा स्वभाव भिन्न है, ये भी विकल्प होता है। ऐसा जान लेता है कि मैं भिन्न हूँ। ऐसे भिन्न हो नहीं जाता है, विकल्प होता है। परन्तु यथार्थ भिन्नता तो ऐसी परिणति न्यारी होवे तब भिन्नता तो होती है। परिणति न्यारी हुए बिना भिन्नता हो सकती नहीं।

मैं अनादिअनन्त शाश्वत द्रव्य हूँ, अनादिअनन्त। ऐसा विकल्प नहीं, परन्तु ऐसी परिणति होनी चाहिये। बीचमें भावना करता है तो विकल्प तो आता है। परन्तु श्रद्धा उसकी ऐसी होनी चाहिये कि मेरी परिणति कैसे न्यारी होवे? परिणति न्यारी होवे तब भेदज्ञान होता है, तब निर्विकल्प दशा होती है। ऐसे तो नहीं होता, विकल्पमात्र-से तो नहीं होता।

पूछा न कैसा चिंतवन करना? चिंतवन तो बीचमें ऐसा आता है कि मैं चैतन्य द्रव्य हूँ। मेरा स्वभाव भिन्न है। उसकी लगन, महिमा सब भीतरमें-से होना चाहिये, तो हो सकता है। परिणति तो न्यारी होवे तब कार्य होता है। परिणति हुए बिना नहीं होता है। स्वभाव भीतरमें-से यथार्थ ग्रहण करे तब होता है। बाहर स्थूल विकल्प- से नहीं होता है। विकल्प-से तो होता ही नहीं। विकल्प-से निर्विकल्प दशा हो सकती नहीं। तो क्या करना? भावना करनी। विकल्प तो बीचमें आता है। परन्तु परिणति कैसे न्यारी होवे? अपने भीतरमें जाकर ऐसी श्रद्धा करना। भीतरमें जाकर ऐसी परिणति प्रगट करनेका प्रयास करना चाहिये।

मुमुक्षुः- निर्विकल्प दशा माने क्या? निर्विकल्प दशामें क्या होता है? विचारशून्य दशा होती है? या क्या होता है?

समाधानः- विचारशून्य नहीं होता है, शून्य दशा नहीं होती है। चैतन्यतत्त्व है, शून्यता नहीं होती। विचार शून्य हो जाय (ऐसा नहीं है)। चैतन्यतत्त्व है। चैतन्यका स्वानुभव होता है। अनन्त गुण-से भरा चैतन्य पदार्थ है, उसकी उसको स्वानुभूति होती है। उसका आनन्द होता है। ऐसे अनन्त गुण-से भरा चैतन्य पदार्थ है। जागृति होती है, शून्यता नहीं होती है। शून्यता नहीं होती, जागृति होती है।