Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। अनादिकालमें (प्रथम) देशनालब्धि होती है। उसमें एक बार देवका, गुरुका प्रत्यक्ष उपदेश मिलता है तो जीवको देशनालब्धि (मिलती है)। उपादान अपना है। उपदेश मिले, देशनाके साथ सम्बन्ध है। ऐसा उपादान-निमित्तका सम्बन्ध है। उपादान अपना है, परन्तु ऐसा निमित्तका योग बनता है और अन्दरसे स्वयंकी तैयारी होती है। ऐसे सत्संगमें भी सत्संगको पहचाने तो तेरा उपादान तैयार हो उसमें सत्संग हाजिर होता है। सत्संगको खोजे, तेरी तैयारी कर। निमित्त-उपादान दोनों (साथमें होते हैं)।

मेरी उपादानकी तैयारी हो उसमें मुझे सत्संग सत्पुरुष मेरे साथ हाजिर रहो। मेरी साधनामें मुझे सत्पुरुष हाजिर रहो। मुझे निमित्तमें वे हो। मेरे उपादानमें मुझे आत्माका स्वरूप प्राप्त करना है, उसमें सत्पुरुष मेरे साथ हो। वे कर देते हैं, ऐसा अर्थ नहीं है। परन्तु निमित्त होता है, ऐसा उपादानका सम्बन्ध है। और निमित्त होता है और मुमुक्षुको ऐसी भावना भी होती है। और आगे जानेवालेको सम्यग्दर्शन हो तो भी देव- गुरु-शास्त्र तरफकी भावना तो रहती ही है। वह मानता है कि शुभभाव मेरा स्वरूप नहीं है, परन्तु बीचमें वह शुभभाव आये बिना रहता नहीं। इसलिये मैं आगे बढँ उसमें देव-गुरु-शास्त्र मेरे साथ हो।

प्रवचनसारमें आता है न? मेरे दीक्षाके उत्सवमें सब पधारना। भगवान पधारना, आचार्य भगवंतो, उपाध्याय, साधु आदि सब पधारना। ऐसा कहते हैं। मैं जा रहा हूँ मेरे-से स्वयं-से, परन्तु मेरे साथ सब पधारना, यहाँ आना। ऐसे भावना भाता है। ऐसा उपादान-निमित्तका सम्बन्ध है। उसमें रुचि असत्संगकी नहीं होती, सत्संगकी रुचि होती है। फिर बाहरका योग कितना बने वह अपने हाथकी बात नहीं है। परन्तु उसकी भावना ऐसी होती है कि मैं आत्माकी साधना करुँ उसमें मुझे देव-गुरु-शास्त्र समीप हो, उनकी सान्निध्यता हो, ऐसी भावना उसे बीचमें रहती है।

मुमुक्षुः- उसे ऐसी भावना तो निरंतर (रहती है)। निरंतर सत्पुरुषको इच्छता है।

समाधानः- भावना रहती है। पुरुषार्थ मेरे-से होता है। कोई कर देता है, ऐसी उसे प्रतीत नहीं होती। परन्तु भावनामें ऐसे निमित्त हो कि साधना करनेवाले, जिन्होंने पूर्णता प्राप्त की, जो आत्माकी साधना करते हैं, उनका मुझे सान्निध्य हो, ऐसी भावना उसे होती है।

मुमुक्षुः- निश्चय और व्यवहारकी ऐसी सन्धि होती है?

समाधानः- ऐसी सन्धि होती है।

मुमुक्षुः- और सत्संग करनेका भाव हो तो निमित्तरूपसे निरंतर सत्पुरुषका सत्संग करनेका भाव आवे।