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समाधानः- हाँ, उसे भावना आवे। मुझे जाना है अन्दर, पुरुषार्थकी गति मुझ- से करनी है, परन्तु बाहरमें भी मुझे निमित्त सत्पुरुषका निमित्त हो, ऐसी भावना (होती है)। मुझे मार्ग बताये, मुझे कहाँ जाना है, वह सब मार्ग बतानेवाले सच्चे निमित्त मेरे पास हो, ऐसी भावना होती है। प्रत्यक्ष सत्पुरुषके सत्संगकी भावना रहती है। फिर बाहरका योग कितना बने वह अलग बात है, परन्तु ऐसी भावना उसे होती है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- .. गुरुदेव देवके रूपमें ही थे। ये गुरुदेव हैं, ऐसे पहचाना। और गुरुदेवके सब कपडे देवके थे। गुरुदेवने ऐसा कहा कि, ऐसा कुछ नहीं रखना। मैं यहीं हूँ। फिर, दूसरी बार कहा। गुरुदेव ऐसा कहते हैं, मैं यहीं हूँ। गुरुदेवने फिर-से कहा, मैं यहीं हूँ। कहा, पधारो गुरुदेव! अहो..! अहो! सदगुरु.. मैंने क्या कहा वह याद नहीं है। पधारो गुरुदेव! ऐसा कहा। फिर गुरुदेवने कहा, मैं यहीं हूँ। फिर कहा, मुझे कदाचित ऐसा लगे, लेकिन ये सब बेचारे गुरुदेव, गुरुदेव करते हैं। सबको कैसे (समझाना)? गुरुदेव कुछ बोले नहीं। गुरुदेवने इतना कहा कि मैं यहीं हूँ। आपको ऐसा कुछ नहीं रखना, मैं यहीं हूँ।
मुमुक्षुः- हम सबको ऐसा ही लगता था कि गुरुदेव यहीं है। परन्तु गुरुदेवकी अनुपस्थिति मालूम ही नहीं पडती।
समाधानः- गुरुदेव... कौन जाने ऐसा अतिशय हो गया। सबको ऐसा हो गया। मैंने तुरन्त किसीको नहीं कहा था। फिर सबके मनमें ऐसा हो गया था कि गुरुदेव यहाँ है। स्वप्नमें ऐसा लगे कि गुरुदेव ही है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- ऐसा रखना ही नहीं। मैं यहीं हूँ। दो बार ऐसा कहा। फिर किसी औरने कहा, गुरुदेव ऐसा कहते हैं कि मैं यहीं हूँ। गुरुदेव कुछ बोले नहीं, परन्तु गुरुदेवने इतना कहा, मैं यहीं हूँ। मैं यहीं हूँ, बहिन! मैं यहीं हूँ। मनमें ऐसा चलता था न, इसलिये। .. आये हो न, ऐसा देवका पहनावा। और मुद्रामें गुरुदेव जैसा लगे और दूसरी तरफ-से देव जैसा लगे। मुगट आदि, देवका रूप होता है न, देवका रूप।
मुमुक्षुः- पंचमकालमें देव आते हैं।
समाधानः- ... इसलिये मैं कहती थी कि गुरुदेव सब देखते हैं। उपयोग रखे तो गुरुदेवको सब दिखता है। गुरुदेव यहाँ-से भगवानके पास जाते हैं। ऊपर-से सब दिखता है। विमानमें जाते हैं। महाविदेह, भरतक्षेत्र सब समीप ही है। यहाँ बगलमें महाविदेह क्षेत्र है। परन्तु यहाँ बीचमें पहाड आ गये इसलिये कुछ दिखता नहीं है। सबकी शक्ति कम हो गयी है।