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मुमुक्षुः- उसमें तो जीवको अपनेमें ज्ञान है, अस्तित्व है, ऐसा थोडा-थोडा ख्यालमें आता है।
समाधानः- दूसरा ख्यालमें नहीं आता, लेकिन उसे पदार्थकी गंभीरता भासित हो तो आये। शास्त्र (पर), महापुरुषों पर विश्वास रखे। यह तत्त्व है वह कोई अपूर्व अनन्त गंभीरतासे भरा है और स्वयं विचार करे, स्वयं उसे पकड नहीं सकता हो तो उसमें कोई गंभीरता भरी है, ऐसे विचार करके भी स्वयंको गंभीरता भासित हो तो आगे बढे। भासित हो ऐसा ही तत्त्व है।
उसका एक ज्ञानगुण ऐसा है कि एक ज्ञानगुण ही जिसे क्रम नहीं पडता, एक समयमें लोकालोकको जाने। भूतकाल, वर्तमान और भविष्य उसके द्रव्य-गुण-पर्याय, ऐसे अनन्त-अनन्त द्रव्य, उसका भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल, जो एक समयमें जानने वाला ज्ञान कोई अगाध है। उसका पार नहीं या बुद्धिसे विचार करे तो उसे विचारमें बैठ सके। बाकी एक ज्ञानगुण ही ऐसा अगाध गंभीर है।
मुमुक्षुः- बैठे फिर भी उसकी अगाधता उसे..
समाधानः- उसकी अगाधता, गंभीरता, महिमा भासे। एक समयमें लोकालोक (जाने), ऐसे अनन्त लोकालोक हो तो भी ज्ञानमें उतनी अनन्त शक्ति है के एक समयमें सब जानने वाला। जिसमें क्रम नहीं पडता, एक साथ एक समयमें (जान लेता है)। क्षयोपशम ज्ञानमें तो एकका विचार करे, दूसरा भूल जाये, ऐसा होता है। इसमें तो उसे सब प्रत्यक्ष (जाननेमें आता है), कुछ भूलता नहीं, प्रत्यक्ष देखता है, जानता है। इसके सिवा उसके अनन्त गुण उसे दिखाई नहीं देते, परन्तु अमुक विचारसे नक्की करे, भले दिखाई नहीं दे। अमुक जो महापुरुषोंने कहा उसे विचारसे नक्की करे और अमुक विश्वाससे नक्की करे।
अस्तित्व ग्रहण करे, इन सबमें मैं कहीं नहीं हूँ। अपना अस्तित्व, जो ज्ञायक अस्तित्व है (उसे ग्रहण करे)। पहले उसे सुखका वेदन नहीं आता। ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण करे। ज्ञानगुण ऐसा असाधारण है कि ज्ञान ज्ञायकतासे मैं स्वयं ज्ञायक हूँ, ऐसा ग्रहण होता है। लेकिन सुख आदिकी उसे अंतरमें प्रतीत आ जाती है। उसे अनुभूति