तो बादमें होती है, पहले उसे सब प्रतीत हो जाती है। और वह प्रतीत होती है कि दृढ प्रतीत (होती है) कि किसीसे चलायमान नहीं हो, ऐसी प्रतीत पहले आ जाती है। परिणतिरूप बादमें होता है, परन्तु प्रतीत आती है।
समाधानः- .. ऐसा नक्की करके बारंबार उसके विचार करे कि मैं तो भिन्न ही हूँ। ये विकल्प मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसा अंतरमें बारंबार उसका प्रयास करे, उसकी लगनी लगाये। खाते-पीते, जागते-सोते, स्वप्नमें उसकी लगनी होती है कि मैं तो भिन्न हूँ। ऐसी लगनी अंतरसे लगनी चाहिये, बारंबार मैं भिन्न हूँ। वह भेदज्ञानका प्रयास (है), यथार्थ भेदज्ञान, सच्चा भेदज्ञान बादमें होता है, परन्तु पहले उसकी लगनी लगती है। तबतक विचार करे, वांचन करे, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आये। गुरुदेव क्या कहते थे, भगवानने पूर्ण स्वरूप प्राप्त किया, गुरु कैसे होते हैं, गुरुका क्या स्वरूप होता है, गुरुदेवने क्या मार्ग बताया है, यह सब नक्की करे, शास्त्रमें मार्ग क्या आता है, यह सब नक्की करे। देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा करे, वह सब शुभभाव है, लेकिन पहले वह बीचमें आये बिना नहीं रहते। आत्मा-शुद्धात्मा प्राप्त नहीं हो तबतक बीचमें आते हैं। परन्तु ध्येय उसे यह होता है कि मुझे शुद्धात्मा प्राप्त करना है। मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो, अंतरसे लगनी लगनी चाहिये। उसे खटक रहा करे। जिसकी स्वयंको इच्छा हो और वह नहीं प्राप्त होता हो तो कैसे अन्दर खटक (रहती है), बार-बार याद आता है। वैसे उसे याद आये।
अपनी माँ हो, तो मेरी माँ। जहाँ भी जाये, कोई पूछे कि तू कौन है? तेरा नाम क्या है? बालक समझता नहीं हो तो बालक, मेरी माँ, मेरी माँ बोलता है। ऐसे मेरी माँ, मेरी माँ, कैसा अंतरमें होता है? वैसे मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो? ऐसी लगनी लगनी चाहिये। उसका बारंबार प्रयास करे, भेदज्ञानका अभ्यास करे, बारंबार मैं भिन्न हूँ, मैं भिन्न हूँ, मैं भिन्न हूँ। मात्र विकल्प ऊपर-ऊपरसे करे वह अलग बात है, परन्तु अंतरसे होना चाहिये।
मुमुक्षुः- आत्मा तो अपने पास ही है।
समाधानः- अपने पास ही है। दृष्टान्त तो ऐसा ही होता है न। आत्मा अपने पास है, परन्तु भूल गया है। बिछड गया हूँ, ऐसा उसे हो गया है। उसे ऐसा हो गया है, भूल गया है। आत्मा स्वयं ही है, परन्तु मैं बिछड गया हूँ। मानो आत्मा कहींका कहीं चला गया हो और मैं बिछड गया हूँ। शरीरमें एकमेक हो गया हूँ, गुम हो गया है, ऐसा उसे हो गया है।
बकरेके झुंडमें सिंह आ गया। सिंह भूल गया कि (मैं सिंह हूँ), मानो मैं बकरी हूँ, ऐसा हो गया है। सिंह भूल गया कि मैं कौन हूँ? ये बकरे भिन्न और मेरा लक्षण