१६० भिन्न है, वह भूल गया है। इसप्रकार स्वयं भूल गया है। उसमें सिंहको कोई कहने वाला मिले कि अरे..! तू इस बकरीके झुंडमें सिंह हो। लक्षणसे पहचान करवाये।
ऐसे गुरुदेव लक्षणसे पहचान करवाते हैैं कि अरे..! तू तो आत्मा जानने वाला है। यह शरीर तू नहीं है। तू उससे भिन्न है। तू देख, अन्दर जानने वाला आत्मा है। ऐसे गुरुदेव मार्गकी पहचान करवाते हैं। उस मार्गको ग्रहण करना चाहिये, बारंबार दृढता करके। उसके लिये सब छोड दे या ऐसा कुछ नहीं है। अन्दरकी रुचि लगनी चाहिये। उसे अंतरमें रस कम हो जाये। रस कम हो जाये। बाहरका सब रहता है, बाहर सब करता हो, लेकिन अन्दर रस छूट जाता है।
मुमुक्षुः- जीवको स्वयंसे विचार करनेपर बुद्धिपूर्वक ऐसा विश्वास उत्पन्न होता है...
समाधानः- अस्तित्वको ग्रहण करना। यह मैं हूँ। मेरा जो स्वभाव, उस स्वभावकी परिणतिरूप, स्वभावरूप परिणमन हो, उसमें ही सब है। उतना विश्वास, उतना संतोष उसे आ जाता है। रुचि उठ जाती है।
मुमुक्षुः- बाहरमें कहीं भी नहीं मिलेगा, ऐसा भी उसे पक्का हो जाये।
समाधानः- हाँ, पक्का हो जाये, बाहरमें कुछ नहीं मिलने वाला नहीं है। बाहरसे जो मान्यता है वह सब जूठी है। बाहरसे सब पराधीन है। पराधीनतामें कहीं सुख नहीं है। सब बाहरका है। सब विभाविक है, स्वाभाविक नहीं है। ज्ञान बाहरसे कहींसे नहीं आता है, सुख बाहरसे कहींसे नहीं आता है। सब अपनेमें भरा है। उसे बोझ लगता नहीं, उसे याद नहीं रखना पडता। सब सहज जानता है।
ज्ञानगुण कोई अगाध गंभीरतासे भरा है। स्वयं शामिल होकर, भावको अपने स्वभावमेंसे नक्की कर ले। विचाररूपसे स्थूलरूपसे होता है, आगे बढकर अपने स्वभावके साथ मिलान करके भी प्रतीत आती है। वह भावभासनरूप (है)।
मुमुक्षुः- शास्त्रसे और ज्ञानीके वचनोंसे...
समाधानः- शास्त्रसे, ज्ञानियोंके वचनोंसे, युक्तिके अवलम्बनसे। अन्दर युक्तिके अवलम्बनसे। उसकी युक्ति ऐसी होती है कि जो कहीं टूटे नहीं, ऐसी निर्बाध युक्तिसे नक्की करे। स्वयं अपने स्वभावके साथ मिलान करके ऐसे युक्तिसे नक्की करे। स्वभाव ज्ञानका है। जो अन्दर आकूलताका वेदन हो रहा है और इस आकूलताके सिवा भी अन्दर अकेला ज्ञान है, उसमें अमुक निराकूलता है, उसमें सुख भी (है)। अमुक अपने वेदनसे जो स्वयंको भावमें वेदन हो रहा है, अपने स्वभावसे मिलान करके ऐसी युक्तिसे नक्की करे। गुरुके वचनोंका अवलम्बन, शास्त्रवचनोंका अवलम्बन लेता है।
मुमुक्षुः- .. डोर द्रव्यके हाथमें ही है और द्रव्यदृष्टि वालेको दृष्टिके हाथमें डोर है यानी कि उसीके अवलम्बनसे ही सभी पर्यायें होती है। यह बात बहुत सुन्दर आयी,