Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 241.

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ट्रेक-
अमृत वाणी (भाग-६)
(प्रशममूर्ति पूज्य बहेनश्री चंपाबहेन की
आध्यात्मिक तत्त्वचर्चा)
ट्रेक-२४१ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- आपको आत्मानुभूति भी है, थोडा-सा आत्मानुभूति करनेका सरलतम रीति क्या है? हम पर दया करके (बताईये)।

समाधानः- पहले मैं आत्मा चैतन्यतत्त्व हूँ, विभाव मेरा स्वभाव नहीं है। विभाव आकुलतास्वरूप है, उसमें कहीं सुख नहीं है। उसकी सुखबुद्धि टूटनी चाहिये। परमें लक्ष्य जाता है, परसे एकत्वबुद्धि होती, परमें कर्ताबुद्धि होती है, ये सब तोडकर आत्मामें ज्ञायकमें, मैं ज्ञायक ही हूँ, ज्ञायकमें ही सब है, सबकुछ ज्ञायकमें है, बाहरमें नहीं है, ऐसा भेदज्ञान करना।

इसलिये बारंबार मैं भिन्न हूँ, मैं चैतन्यतत्त्त्त्व हूँ, विभाव मैं नहीं हूँ। चैतन्यको लक्षणसे पहचान लेना कि ये चैतन्यलक्षण मेरा है, रागका लक्षण भिन्न है। उसका लक्षण भिन्न है। मैं निराकूल स्वभाव हूँ, ये आकुललक्षण है। उसको भिन्न-भिन्न करके चैतन्यमें दृष्टि करना। उसका क्षण-क्षणमें भेदज्ञान करना कि मैं चैतन्य अनादिअनन्त हूँ। चैतन्यको ग्रहण करना और पर तरफ-से दृष्टि उठा लेना। ऐसा बारंबार करना। ऐसी दृष्टि स्थिर न हो तो भी बारंबार उसको ग्रहण करना चाहिये कि मैं चैतन्य हूँ, मैं चैतन्य हूँ, ऐसा बारंबार भीतरमें-से भेदज्ञान करना चाहिये। तो विकल्प टूटते हैं और स्वानुभूति होती है।

पहले तो चैतन्यको ग्रहण करना चाहिये। उसे लक्षण-से पहचानना चाहिये। जन्म-