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रखे तो प्रगट हुए बिना नहीं रहता।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- लगनी आदि करने जैसा है। ऐसा पुरुषार्थ हो तो प्राप्त हुए बिना रहता ही नहीं। क्षण-क्षणमें चैन पडे नहीं अन्दर आत्माके बिना, आत्माकी प्राप्ति बिना चैन पडे नहीं। दिन और रात ऐसी लगन लगे अंतरमें तो ऐसी चैतन्यकी धारा हो तो अंतरमें प्राप्त होता है। और तो उसे स्वानुभूति होती है। वह तो स्वयंको ही मालूम पडता है। स्वयं कहीं टिक नहीं सकता हो, बाहरके कोई प्रसंगोंमें कोई विकल्पोंमें उसे कहीं चैन पडे नहीं, आकुलता लगे-दुःख लगे। वह स्वयं ही स्वयंको ग्रहण कर सके कि अंतरमें ही जाने जैसा है, बाहर कहीं सुख नहीं है। मेरा चैतन्य ज्ञायक स्वभाव, वही ग्रहण करने जैसा है। ये सब आकुलतारूप है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- जानना-देखना नहीं होवे तो भी वह लक्षण-से निश्चय करे कि बाहरमें तो कहीं सुख है नहीं, आकुलता है। सुख तो चैतन्यतत्त्वमें है, बाहरमें तो नहीं है। ऐसा विचार करके नक्की करना, प्रतीत करना चाहिये कि आनन्द स्वभाव तो मेरा है। आनन्द-आनन्द, सुख-सुखकी इच्छा करता है, लेकिन बाहरमें सुख तो मिलता नहीं। विकल्पमें सूक्ष्म दृष्टि-से देखे तो आकुलता है। उसमें कहीं सुख नहीं है।
शुभ या अशुभ दोनों (भावमें) आकुलता ही है। सुख तो अंतरमें है। ऐसी प्रतीत करनी चाहिये। ज्ञायक स्वभाव आत्मामें आनन्द और ज्ञान भरा है, ऐसा लक्षण-से पहचानना चाहिये। दिखनेमें नहीं आता है तो भी विचार-से नक्की करना चाहिये। नक्की करके प्रयत्न करना चाहिये। देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं कि तेरे आत्मामें सुख है, आनन्द है। ऐसा प्रगट करके अनन्त जीव मुक्तिको प्राप्त हुए हैं। आत्मा स्वानुभूति करता है, क्षण- क्षणमें आत्मामें लीन होता है। ऐसा जो देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं, उनकी वाणीकी प्रतीत करना। और विचार करके अपने लक्षण-से नक्की करके प्रतीत करना चाहिये। परीक्षा करके नक्की करना चाहिये कि ज्ञायक आत्मामें ही सुख है, बाहरमें नहीं है। सुख अपने स्वभावमें है, बाहरमें-से आता नहीं। ज्ञायक जो जाननेवाला है उसमें निराकूलता है। ऐसा कोई आत्मामें आनन्द गुण है, स्वतंत्रपने। ऐसा लक्षण-से नक्की करना चाहिये। दिखनेमें नहीं आता, पहले कहीं स्वानुभूति नहीं होती, पहले तो प्रतीत होती है।
ज्ञानलक्षण जाननेमें आता है, आनन्द तो जाननेमें नहीं आता है, तो भी विचार करके नक्की करना चाहिये। महापुरुष जो कहते हैं, उनके वचन पर विश्वास करके, परीक्षा करके नक्की करना चाहिये। बादमें उसका पुरुषार्थ करना चाहिये। बाहरमें तो सब आकुलता है। विकल्पमें भी, विचार करे तो सब आकुलता है। थकावट है। विश्रांति