સત્પુરુષકી પૂર્ણ આજ્ઞા માનની ચાહિયે, તો આજ્ઞા કિતની પ્રકારકી હોતી હૈ? કોઈ ભી પ્રકારકી અસાવધાની રહ જાતી હૈ તો ક્યા મુમુક્ષુ કલ્યાણકે યોગ્ય હૈ યા નહીં? 0 Play सत्पुरुषकी पूर्ण आज्ञा माननी चाहिये, तो आज्ञा कितनी प्रकारकी होती है? कोई भी प्रकारकी असावधानी रह जाती है तो क्या मुमुक्षु कल्याणके योग्य है या नहीं? 0 Play
બધી અપેક્ષાનો મેળ કરી સમજવું તે વિષે.... 5:45 Play बधी अपेक्षानो मेळ करी समजवुं ते विषे.... 5:45 Play
પર્યાયકો ગૌણ કરકે ભિન્ન કહી જાતી હૈ યા ક્યા વાસ્તવમેં ભિન્ન હોકર દૃષ્ટિકા વિષય બનતી હૈ? 7:55 Play पर्यायको गौण करके भिन्न कही जाती है या क्या वास्तवमें भिन्न होकर दृष्टिका विषय बनती है? 7:55 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રીને ફરમાયા કિ સમ્યગ્દર્શનકે વિષયમેં સમ્યગ્દર્શનકી પર્યાય નહીં હૈ? 9:15 Play पूज्य गुरुदेवश्रीने फ़रमाया कि सम्यग्दर्शनके विषयमें सम्यग्दर्शनकी पर्याय नहीं है? 9:15 Play
કરને લાયક તો સબ આત્મામેં હૈ, બાહરમેં કુછ નહીં હૈ ઉસ સમ્બન્ધી 10:35 Play करने लायक तो सब आत्मामें है, बाहरमें कुछ नहीं है उस सम्बन्धी 10:35 Play
ક્રમબદ્ધપર્યાય સમ્બન્ધી... 11:50 Play क्रमबद्धपर्याय सम्बन्धी... 11:50 Play
માતાજી પર્યાયમેં અલ્પજ્ઞતા હૈ તો દ્રવ્ય સ્વભાવમેં વિશ્ચાસ કૈસે આવે? 13:05 Play माताजी पर्यायमें अल्पज्ञता है तो द्रव्य स्वभावमें विश्चास कैसे आवे? 13:05 Play
હમેં ઇન્દ્રિયજ્ઞાન તો હૈ અતીન્દ્રિય કૈસે હોવે? 14:00 Play हमें इन्द्रियज्ञान तो है अतीन्द्रिय कैसे होवे? 14:00 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી કહતે થે કિ ઇન્દ્રિયજ્ઞાન પરકો જાનતા નહીં હૈ? 15:15 Play पूज्य गुरुदेवश्री कहते थे कि इन्द्रियज्ञान परको जानता नहीं है? 15:15 Play
પૂજ્ય માતાજી! આબાલ-ગોપાલ સભીકો ભગવાન આત્મા જાનનેમેં આ રહા હૈ થોડાસા સ્પષ્ટ કરેં? 16:25 Play पूज्य माताजी! आबाल-गोपाल सभीको भगवान आत्मा जाननेमें आ रहा है थोडासा स्पष्ट करें? 16:25 Play
मुमुक्षुः- ... सत्पुरुषकी सब आज्ञा मानना चाहिये। तो आज्ञा कितनी-कितनीप्रकारकी होती है? क्योंकि वे कहते हैं कि कोई प्रकारकी भी अपात्रता रह जाती है तो मुमुक्षु कल्याणके योग्य नहीं होता है।
समाधानः- कितने प्रकारकी आज्ञा क्या? सत्पुरुषकी आज्ञा तो अपनी पात्रतादेखकर आज्ञा करते हैं। आज्ञा कितने प्रकारकी होती है? .. ज्ञानीका आशय ग्रहण करना चाहिये। ज्ञानी कहते हैं, क्या कहते हैं? आशय ग्रहण करके अपनी परिणति प्रगट करना चाहिये। अनेक जातमें कहाँ-कहाँ जीव रुक जाता है। स्वच्छन्द, मताग्रह, अपनी मानी हुयी कल्पनाओंमें (अटक जाता है)। सत्पुरुषका आशय३ क्या है, वह आशय ग्रहण करके वस्तुका स्वरूप समझना चाहिये। यथार्थ समझकरके क्या करना चाहिये उसका आशय ग्रहण करना चाहिये। वे क्या कहते हैं?
स्वयं निर्णय करे उसे सत्पुरुषके आशयके साथ मिलान करना। ज्ञानीका क्या आशयहै? मैं क्या मानता हूँ? आशय यथार्थपने जो निर्णय करता है, उसके साथ मिलान करता है। क्या कहते हैं, यह समझना चाहिये। उस प्रकार अपनी परिणति प्रगट करनी चाहिये। वे कहते हैं, उस प्रकार-से। ... ग्रहण करके अपनी परिणति प्रगट करना चाहिये। पुरुषार्थ करना चाहिये। पुरुषार्थकी मन्दता होवे तो ज्ञानी जो कहते हैं उस पर प्रतीत करनी चाहिये। और भावना रखनी चाहिये कि मैं कैसे आगे जाऊँ? ऐसा पुरुषार्थ करना चाहिये।
अपने मतमां कहीं न कहीं अटक जाता है। ज्ञानीका आशय क्या है? देव-शास्त्र-गुरु क्या कहते हैं? उसे ग्रहण करके उस अनुसार अपनी परिणतिको, अपने पुरुषार्थको उस अनुसार चालू करे तो यथार्थ मार्ग उसे प्रगट होता है। उसका आशय ग्रहण करना चाहिये। चारों तरफ-से ज्ञानी क्या कहते हैं? उनका आशय क्या है? उसे ग्रहण करके अपनी परिणति कर लेनी चाहिये।
... वह ज्ञानीका आशय ग्रहण कर लेता है। देव-गुरु-शास्त्र क्या कहते हैं, वहग्रहण कर सकता है। उसकी पात्रता ऐसी होती है। यदि पात्रता नहीं होवे तो अपनी मति कल्पना-से रुक जाता है।