Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

१६ है। कहीं भी (उपयोग नहीं है)। अकेले आत्मामें लीनता है। एक आत्माके सिवा (कहीं उपयोग नहीं हैे)। उसमें जो आनन्दकी परिणति प्रगट होती है वह अलग है। सविकल्प दशामें भेद तो रहता ही है। ज्ञायक स्वयं जो निर्विकल्प (अवस्थाके) कालमें है, वही ज्ञायक सविकल्प दशामें वही ज्ञायक है, साथ-साथ विकल्प है। विकल्प है इसलिये भिन्न रहता है। एकत्वबुद्धिकी आकूलता नहीं है, भिन्न रहता है। भिन्न रहता है, उस अपेक्षासे उसे शान्तिका वेदन रहता है, शान्ति है। मन्द कषायकी शान्ति नहीं, भिन्न रहकर शान्तिका वेदन वेदता है। आत्माका जो अदभूत स्वरूप है, आत्माका अदभूत स्वरूप है वह उसमें प्रगट नहीं है। उसका उघाड है। (निर्विकल्पताके कालमें) उपयोगात्मक है।

मुमुक्षुः- उपयोगात्मक है इसलिये स्पष्ट ख्यालमें आता है।

समाधानः- अन्दर वेदन, एकाग्रताकी लीनता एक आत्मामें ही है, आत्माका ही वेदन कर रहा है, बाहर कहीं भी उसका लक्ष्य ही नहीं है, कहीं भी उपयोग नहीं है। कोई विकल्पमें उपयोग नहीं है, कहीं भी नहीं है। उपयोग एक स्वरूपमें जम गया है। उसका जो स्वरूप है उस स्वरूपमें ही उपयोग जमा है, इसलिये स्वरूपका ही वेदन करता है। जगतसे, सब विकल्पसे भिन्न होकर, विभावके लोकसे भिन्न होकर एक स्वभावलोकमें चला गया है। विभावका लोक है या नहीं, उसका उसे भान भी नहीं है। एक स्वभावमें ही रहता है, स्वभावका ही वेदन है। स्वभावको ही देखता है, स्वभावका ही वेदन करता है, उस समय स्वभावको ही जानता है।

सविकल्प दशामें स्वभावकी ओर परिणति है। स्वभावकी ओर परिणति है, स्वभावकी ओर शान्ति है, स्वभावकी ओर ज्ञायककी धारा है, परन्तु स्वभावमें वैसा लीन नहीं है। विभाव और स्वभाव, दोनों साथमें उसे ज्ञानमें ज्ञात हो रहे हैं। विभाव और स्वभाव दोनोंका ज्ञान होता है। स्वयं भिन्न रहकर जानता है। लेकिन स्वरूपमें उपयोग लीन नहीं हुआ है। उपयोग लीन नहीं हुआ है। लीन नहीं है अर्थात उसका वेदन भी उसप्रकारका नहीं है।

उसमें तो एक ही है-निर्विकल्पदशाका आनन्द और सविकल्पदशाकी (शान्ति) दोनों अलग ही है। शान्ति-वह शान्ति, एकत्वबुद्धिमें मन्द कषायकी शान्ति होती है, उससे ज्ञायकधाराकी शान्ति अलग है। वह मन्द कषायकी शान्ति नहीं है। उसे भिन्नताकी शान्ति है। लेकिन निर्विकल्पदशाका आनन्द और वह शान्ति दोनों अलग है। गृहस्थाश्रममें हो तो भी ऐसा है और चारित्रदशा बढे तो मुनिदशामें भी बाहर आये तो निर्विकल्पदशा अलग है और सविकल्पदशा, दोनों दशा ही अलग है। दोनोंमें अन्तर है। मुनिदशामें कुछ अलग हो जाता है, ऐसा भी नहीं है।