मुमुक्षुः- साक्षात ज्ञानीकी वाणी ... आडियो यानी टेपमें जो वाणी है अथवा टी.वी.में-विडीयोमें वाणी हो, वह सम्यग्दर्शनमें निमित्त हो, उसे साक्षात कह सकते हैं?
समाधानः- नहीं कह सकते। परन्तु पहले जो वाणी स्वयंने साक्षात सुनी हो, साक्षात सत्पुरुषसे-गुरुदेवकी वाणी स्वयंने साक्षात पहले सुनी हो वह स्वयंको असर करे, उसके साथ मिलान करे। लेकिन अनादिसे सर्वप्रथम जिसे सत्पुरुष मिले नहीं, अनादि कालमें सर्वप्रथम टेपमें सुने, वह असर (और) साक्षातकी असर अलग होती है।
मुमुक्षुः- उसे साक्षात नहीं कह सकते।
समाधानः- साक्षात नहीं कह सकते। साक्षात चैतन्यमूर्तिकी वाणी नहीं कह सकते। स्वयं साक्षात एक बार सुना हो, उसके बाद वह सब असर करता है।
मुमुक्षुः- अर्थात एकबार सत्पुरुषका साक्षात...
समाधानः- साक्षात जिनेन्द्रदेव अथवा सत्पुरुष, कोई भी उसे मिलने चाहिये। एकबार साक्षात मिले और अन्दर संस्कार पड जाये, फिर सब असर करता है।
मुमुक्षुः- ऐसा क्यों है? माताजी! ऐसे देखे तो विडीयोमें अथवा टेपमें तो वही वाणी है, वही .. है, फिर भी इतना अंतर क्यों है?
समाधानः- चैतन्यमूर्ति उसमें नहीं है। चैतन्यदेव बिराजे और उसमें जो वाणी आये, उस वाणीकी असर कोई अलग होती है। उनकी मुद्रा, उनके भाव, वे कहाँ- से कहते हैं, किसप्रकार भेदज्ञानसे आत्माकी कोई अपूर्वता दर्शाते हैं, यह उनकी मुद्रा एवं भाव आदि सबके उसे दर्शन हो, वह दिखायी दे और उसमेंसे सुनकर जो असर होती है, वह असर अलग होती है। देशनालब्धि होती है वह साक्षात सत्पुरुषसे प्राप्त होती है।
मुमुक्षुः- सामने प्रत्यक्ष चैतन्य होना चाहिये।
समाधानः- प्रत्यक्ष चैतन्य होना चाहिये।
मुमुक्षुः- निर्विकल्प दशामें जो आनन्द होता है और सविकल्प दशामें जो शान्तिका वेदन होता है, तो आत्मा तो अतीन्द्रिय है, फिर भी उसमें आप जो भेद करते हो उसमें किसप्रकार निर्विकल्प दशाके कालमें निर्भेल आनन्द है और इसमें शान्ति है?
समाधानः- विकल्प छूटकर जो आनन्द आता है, उस आनन्दमें अकेला आत्मा