Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२०

मुमुक्षुः- गुरुदेव कहते थे कि ज्ञान परको जानता ही नहीं है। तो हम करें क्या?

समाधानः- गुरुदेव ऐसा नहीं कहते थे, परको नहीं जानता है ऐसा नहीं कहते थे। गुरुदेव कहते थे, स्वपरप्रकाशक ज्ञान है। शास्त्रमें ऐसा आता है। स्वपरप्रकाशक ज्ञानका स्वभाव है। पर तरफ तेरी एकत्वबुद्धि है। परमें उपयोग लगता है तो परको मैं जानता हूँ, स्वको भूल गया है। स्वका ज्ञान प्रगट कर। परको तू जानता नहीं है ऐसा नहीं है। स्वपरप्रकाशक ज्ञानका स्वभाव है। जाननेका हटाना नहीं है, अपनी रुचि बदलनी है। उपयोग पलट दे। उपयोग स्व तरफ कर ले। मैं ज्ञायक स्वभाव हूँ। उसमें जो सहज स्वभाव स्वपरप्रकाशक है, केवलज्ञानमें स्वपरप्रकाशक स्वभाव प्रगट होता है।

उपयोग बाहर ज्ञेयमें लग जाता है, ज्ञेय उपयुक्त (होता है), ज्ञेयमें एकमेक हो जाता है। ज्ञेयमें एकमेक नहीं होना। भेदज्ञान करके अपने स्वरूपमें लीन होना। तो अपना स्वपरप्रकाशक ज्ञान प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! आबालगोपाल सभीको भगवान आत्मा जाननेमें आ रहा है। थोडा-सा स्पष्टि किजीये।

समाधानः- आबालगोपालको जाननेमें आ रहा है उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि जाननेमें आ रहा है इसलिये उसकी अनुभूति हो रही है, उसकी स्वानुभूति हो रही है (ऐसा नहीं है)। अनुभूति ऐसी हो रही है कि स्वयंसिद्ध आत्मा है। उसका असाधारण ज्ञानस्वभाव है। वह ज्ञानस्वभाव अपने स्वभावरूपसे परिणमता है, विभावरूप नहीं हुआ है। द्रव्यदृष्टि-से स्वभावरूप परिणमता है। आबालगोपाल सब ज्ञानमें जान सकते हैं। उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि उसकी अनुभूति अर्थात सम्यकज्ञान हो गया, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।

ज्ञानस्वभाव सबको लक्ष्यमें आ सकता है। असाधारण ज्ञानस्वभाव है। सब जान सकते हैैं कि मैं ज्ञानस्वभाव आत्मा हूँ। ये जड कुछ जानते नहीं। मैं जाननेवाला हूँ, ऐसी प्रतीत सब आबालगोपाल कर सकते हैं। मैं जाननेवाला हूँ, ये जड नहीं जानता है, मैं जाननेवाला हूँ। अपने स्वभावरूप ज्ञानस्वभाव अनादिअनन्त है। वह ज्ञान जड नहीं हुआ। वह ज्ञानस्वभाव आबालगोपाल सब जान सकते हैं। ज्ञानकी अनुभूति होती है। यथार्थ स्वभावमें लीन होकर स्वानुभूति हो रही है, ऐसा अर्थ नहीं है। अनुभूति अर्थात ज्ञान सबको है। ऐसा असाधारण ज्ञानस्वभाव सबको जाननेमें आता है। उसका अर्थ ऐसा है। जड नहीं है। ज्ञानस्वभाव सबको अनुभवमें आ रहा है, ऐसा ज्ञानस्वभाव अनुभवमें आ रहा है। सम्यकरूप-से (आ रहा है), ऐसा नहीं। उसका लक्षण, जो लक्षण है वह आबालगोपाल सब जान सकते हैं। ऐसा उसका ज्ञानस्वभाव है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!