Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 244.

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ट्रेक-२४४ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! शुद्ध द्रव्यका चिंतवन किस प्रकार-से करना चाहिये? थोडा-सा (स्पष्ट कीजिये)।

समाधानः- शुद्ध द्रव्यका चिंतवन तो मैं शुद्ध स्वभाव अनादिअनन्त (हूँ)। अनन्त काल गया, जन्म-मरण हुए, असंख्यात प्रकारके विभाव हुए और जन्म-मरण तो अनन्त हुए। उसके परिणाम भी अनेक प्रकारके हुए। तो भी वह द्रव्य पलटकरके अशुद्ध नहीं हुआ। द्रव्यका स्वभाव शक्तिरूप-से वैसा ही है। ऐसा मैं अनादिअनन्त शुद्धात्मा हूँ। अनन्त काल गया तो भी नाश नहीं हुआ। नाश होनेवाला नहीं है। वह स्वानुभवमें आ सकता है। ऐसा मैं स्वभाव अनादिअनन्त स्वयंसिद्ध आत्मा हूँ। उसका अस्तित्व ग्रहण करना। मैं ज्ञायक स्वभाव हूँ। ये विभाव है वह आकुलतारूप है। मैं निराकुल आत्मा ज्ञायक हूँ। ऐसा ज्ञायक स्वभाव मैं शुद्धात्मा हूँ। ऐसा विचार करना।

भीतरमें-से जब उसका अस्तित्व यथार्थ ग्रहण करे तो यथार्थ ग्रहणमें आता है। बाकी विचार करता है, अभ्यास करता है। यथार्थ ग्रहण तो भीतरमें जाकर उसका स्वभाव ग्रहण करे, उसका अस्तित्व ग्रहण करे तो यथार्थ ग्रहण होता है। बाकी विचार करे, प्रतीत करे, अभ्यास करे। मैं अनादिअनन्त शुद्धात्मा ज्ञायक हूँ और विभाव शुभभाव होता है वह पुण्यबन्धका (कारण), वह भी विभाव है। ऊँचा शुभभाव आवे, ज्ञान- दर्शन-चारित्रका भेद आवे तो भी शुभभाव रागमिश्रित है। मैं शुद्धात्मा हूँ। गुणका भेद होवे तो भी वह जान लेता है कि स्वभावमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र सब है। तो भी उसका जो विकल्प आता है, वह विकल्प मेरा स्वरूप नहीं है। लक्षणभेद है। वास्तविकमें अनादिअनन्त अखण्ड चैतन्य हूँ, ऐसे शुद्धात्माको ग्रहण करना।

मुमुक्षुः- माताजी! स्वानुभव कालमें क्या द्रव्य-पर्याय दोनों एकसाथ अनुभवमें आते हैं?

समाधानः- द्रव्य-पर्याय दोनों (अनुभवमें आते हैं)। वास्तवमें पर्यायकी अनुभूति होती है और द्रव्य पर दृष्टि तो रहती है, निरंतर दृष्टि रहती है। अनुभूति पर्यायकी होती है, परन्तु द्रव्य और पर्याय दोनों ज्ञानमें आ जाते हैं। ज्ञानमें द्रव्य-पर्याय दोनों आ जाते हैं। द्रव्य और पर्याय, दोनोंकी अनुभूति। इस अपेक्षा-से द्रव्य-पर्याय दोनोंकी