Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२२ अनुभूति होती है। प्रगट पर्याय हुयी इसलिये पर्यायका अनुभव हुआ। ऐसा कहते हैं। परन्तु द्रव्य-पर्याय दोनोंका ज्ञान होता है।

मुमुक्षुः- मातेश्वरी! ये सब विकल्प, मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ करते-करते निर्विकल्पताका आनन्द नहीं आ रहा है।

समाधानः- विकल्प.. विकल्प... विकल्प-से निर्विकल्प नहीं होता है। उसका अभ्यास रहता है कि मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ। विकल्प तो विकल्प ही है। वह शुभ विकल्प है। परन्तु अभ्यास तो पहले ऐसे ही होता है। विकल्प, रागमिश्रित भाव साथमें रहता है कि मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ। विकल्प-से निर्विकल्प नहीं होता। मैं ज्ञायक हूँ, ऐसी परिणति प्रगट होवे और विकल्प टूट जाय।

मैं ज्ञायक ही ज्ञायक हूँ। स्वयंसिद्ध अनादिअनन्त ज्ञायक हूँ। ज्ञायक स्वभावी शुद्धात्मा ज्ञायक हूँ। ऐसी प्रतीत दृढ करके उसकी लीनता होवे, इस तरहकी परिणति प्रगट होवे तो निर्विकल्प होता है, तो विकल्प टूट जाता है। बाकी विकल्प बीचमें आता है, परन्तु विकल्प-से वह निर्विकल्प नहीं होता है। भीतरकी लीनता, उसकी एकाग्रता, उसकी प्रतीतिकी दृढता होवे, लीनताकी दृढता होवे तो निर्विकल्प होता है। विकल्प-से निर्विकल्प नहीं होता है।

मुमुक्षुः- आचार्य कहते हैं कि युक्तिके अवलम्बन-से अन्दरमें जाना। तो कौन- सी प्रबल युक्ति है जिससे अन्दर जाय?

समाधानः- युक्तिके अवलम्बन-से। दृढ युक्ति-से ऐसा निर्णय करना चाहिये कि मैं शुद्धात्मा ही हूँ और कुछ मैं नहीं हूँ। युक्ति-से, आगम-से ऐसे सबसे यथार्थ निर्णय करना, बादमें स्वानुभूति होती है। जो आगम बताता है, जो युक्ति-से (नक्की किया) कि स्वभाव है उसका नाश नहीं होता है। स्वभाव तो अनादिअनन्त जो स्वयंसिद्ध वस्तु है, उसका नाश नहीं होता है। ऐसी अनेक तरहकी युक्ति-से निर्णय करना चाहिये।

मैं ज्ञानस्वभाव हूँ। ज्ञान तो ज्ञान ही रहता है। जो पानी शीतल है, वह शीतल ही रहता है। अग्निकी उष्णताका स्वभाव है, उष्ण ही रहता है। ये तो दृष्टान्त है, स्थूल दृष्टान्त है। अनादिअनन्त परमाणु परमाणु रहता है, आत्मा आत्मा ही रहता है। वस्तुका नाश नहीं होता। ऐसी अनेक तरहकी युक्ति-से मैं चैतन्य स्वभाव आत्मा, शुद्धात्मा हूँ। उसमें अशुद्धता नहीं होती है। अशुद्धता पर्यायमें होती है। एक द्रव्यमें दूसरा द्रव्य प्रवेश नहीं करता। अनेक तरहकी युक्तिके बल-से और जो आचार्य भगवंत कहते हैं, गुरुदेव कहते हैं, उन सबका मिलान करके युक्तिके अवलम्बन-से दृढ प्रतीति करके आगे जाये कि मैं ज्ञायक हूँ, यथार्थ मैं ज्ञायक हूँ। स्वयंसिद्ध शुद्धात्मा हूँ। ऐसी बारंबार प्रतीति दृढ करके लीनताकी दृढता करना। बारंबार उसका अभ्यास करना। युक्ति अनेक