Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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तरहकी, यथार्थ युक्ति ऐसी दृढ होती है कि जो टूटती नहीं। ऐसी सम्यक युक्ति-से निर्णय करना चाहिये।

मुमुक्षुः- माताजी! वचनामृतमें आता है, खण्ड खण्ड उपयोग परवशता है। रागको परवशता समझना है कि ज्ञानको? खण्ड खण्ड उपयोग परवशता है तो वहाँ रागको समझना कि ज्ञानको?

समाधानः- राग परवश है। रागके साथ अधूरा ज्ञान है, अधूरा ज्ञान। इसलिये अधूरे ज्ञानको उपचार-से परवश कहनेमें आता है। रागमिश्रित क्षयोपशम ज्ञान भी परवश है। अधूरा ज्ञान भी परवश है। क्रम-क्रम प्रवर्तता है, खण्ड खण्ड प्रवर्तता है। पूर्ण केवलज्ञान है वह एक साथ प्रवर्तता है। राग परवशता है, लेकिन क्षयोपशम ज्ञानको भी परवश गिननेमें आता है। उसको भी उपचार-से परवश कहनेमें आता है।

मुमुक्षुः- .. वचन हमेशा अनुभवपूर्ण होते हैं, ऐसे हम आप चरणोंकी सेवामें हमेशा बने रहेंगे, यही भावना भाते हैं। ... बताया, उसमें और आपके बतलानेमें कुछ भी अंतर नहीं है।

समाधानः- बहुत स्पष्ट किया है, पूरे हिन्दुस्तानको जगा दिया। कोई जानता नहीं था, मार्ग बताया सबको। सब क्रियामें पडे थे। सब बाहरमें पडे थे, दृष्टि बाहर थी। कोई थोडा स्वाध्याय कर ले, कोई थोडी क्रिया कर ले, थोडा उपवास कर ले (उसमें) धर्म मान लेते थे। गुरुदेवने ...

मुमुक्षुः- ... समवसरणके साथ जा रहे हैं। समवसरणमें जा रहे हैं। तो वे बोले, क्या तीर्थंकरके पास? तीर्थंकर भी विराजमान हैं, दोनों विराजमान हैं। परमागम मन्दिर हमको गुरुदेवकी याद दिलाता है और वचनामृत भवन बन रहा है, वह माताजीकी याद दिलाता है।

समाधानः- ४५ वर्ष गुरुदेव यहाँ विराजमान रहे। बरसों तक निरंतर वाणी बरसायी। वाणी बरसानेवाले कोई महाभाग्य-से निरंतर वाणी बरसानेवाले। ऐसे अध्यात्मके निरंतर...

मुमुक्षुः- गुरुदेव तो कहते थे कि मेरु सम पुण्यका उदय हो तब ज्ञानीके वचन सुननेको मिलते हैं। हम लोगोंका महाभाग्य, बहिनश्री! आपकी छत्रछाया हम लोगोंके ऊपर है।

मुमुक्षुः- पूज्य माताजी! गुरुदेवने टेपमें फरमाया था कि प्रमाण पूज्य नहीं है, नय पूज्य है। थोडा-सा स्पष्टीकरण।

समाधानः- गुरुदेव ऐसा कहते थे कि नय पूज्य है। मुक्तिके मार्गमें नय मुख्य होता है। शुद्धनय शुद्धात्माको ग्रहण करो, द्रव्यदृष्टि करो, इसलिये नय पूज्य है। इस अपेक्षा-से। प्रमाण पूज्य है वह नयकी अपेक्षा-से नहीं, ऐसा कहते थे। परन्तु प्रमाण