२४ ऐसे साथमें रहता है। जिसको नय प्रगट होती है उसके साथमें प्रमाण होता है। प्रमाणज्ञान साथमें रहता है। द्रव्य-पर्याय दोनोंका प्रमाण-से मिलान होता है। इसलिये जो केवलज्ञान प्रगट होता है, जो मुनिदशा प्रगट होती है, साधक दशा-साधना वह सब पर्यायमें होती है। इस अपेक्षा-से नय और प्रमाण दोनों पूज्य हैं। गुरुदेव कोई जगह कहते थे, नयको मुख्य करते थे।
यदि प्रमाण पूज्य नहीं होवे तो मुनिदशा भी पूज्य नहीं होवे, तो केवलज्ञान भी पूज्य नहीं होवे। पर्याय प्रगट होती है तो नय और प्रमाण दोनों (साथमें रहते हैं)। साधक दशामें द्रव्यदृष्टि मुख्य करके साधनाकी पर्याय जो प्रगट होती है, चौथी भूमिका, पाँचवी, छठ्ठी-सातवीं भूमिका सब भूमिका होती है। उसमें सब पर्याय प्रगट होती है। इसलिये दोनों साथमें (होते हैं)।
परन्तु नयकी अपेक्षा-से अनादि काल-से जीवने शुद्धनयका पक्ष किया नहीं। शुद्धनयके बिना मुक्ति प्रगट होती नहीं। इसलिये नय पूज्य है, प्रमाण पूज्य नहीं है। वह तो पर्यायको गौण करनेके लिये कहा है। परन्तु साधक दशामें पर्याय तो आती है। इसलिये मुनिको पूज्य कहते हैं, केवलज्ञान (पूज्य है)। दोनों अपेक्षा समझनी चाहिये।
गुरुदेवकी बातमें दो अपेक्षा आती थी। दूसरी जगह प्रमाण और नयका सबका सम्बन्ध आता था। गुरुदेव भक्तिका अधिकार, दानका अधिकार सब पढते थे तो उसमें निश्चय-व्यवहारका मिलान करते थे। दोनों समझना चाहिये।
नय मुख्य है। अनादि काल-से जीवने उसे ग्रहण नहीं किया। मुक्तिके मार्गमें शुद्धात्माकी दृष्टि मुख्य रहती है। परन्तु पर्यायकी शुद्धता होती है। इसलिये नय और प्रमाण साथमें रहते हैं। प्रमाण पूज्य नहीं है। परन्तु नय-प्रमाण दोनों पूज्य हैं, कोई अपेक्षा-से। तो मुनिदशा पूज्य नहीं होती, तो केवलज्ञान पूज्य नहीं होता। यदि प्रमाण पूज्य नहीं होता तो, पर्याय पूज्य नहीं होती तो।
मुमुक्षुः- आज टेपमें आया था, माताजी! कि ध्रुवके षटकारक अलग है, पर्यायके षटकारक अलग हैं। तो हमें गभराहट होती है।
समाधानः- नहीं, अलग ऐसे नहीं है। ध्रुवके षटकारक अलग, वह दूसरी अपेक्षा है। दोनों द्रव्य अलग-अलग हैं। ध्रुवका षटकारक और दूसरे द्रव्यका अलग है। और पर्यायके षटकारककी अपेक्षा दूसरी है।
जितना द्रव्य स्वतंत्र है, उतनी पर्याय स्वतंत्र नहीं है। पर्याय द्रव्यके आश्रयमें होती है। पर्याय यदि इतनी स्वतंत्र होवे तो द्रव्य और पर्याय दोनों द्रव्य हो जाय। यदि इतनी पर्याय स्वतंत्र हो तो पर्याय ही द्रव्य हो जाय, दोनों द्रव्य हो जाय। इसलिये पर्याय द्रव्यके आश्रय-से होती है। परन्तु पर्याय एक अंश है। वह स्वतंत्र है। यह बतलानेके