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लिये उसके षटकारक भिन्न बताये। परन्तु इतनी अपेक्षा समझनी चाहिये कि द्रव्यके आश्रय- से पर्याय रहती है। द्रव्यके आश्रयमें पर्याय रहती है। इसलिये द्रव्य जितना स्वतंत्र है, उतनी पर्याय स्वतंत्र नहीं है। ऐसा समझना चाहिये। गुरुदेवकी अपेक्षा अनेक प्रकारकी (आती थी)।
मुमुक्षुः- ... पूरा सार आ गया। भविष्यका चित्रण बताना तेरे हाथकी बात है। उसको ही संभालकर रहे। परद्रव्यकी सँभाल करते-करते अनन्त काल बीत गया। लेकिन आत्मद्रव्य भीतर विराजमान है, उसकी सँभाल एक समयमात्र नहीं करी। ये मार्ग मिला कहाँ-से? ये रग-रगमें भरा हुआ है। रोम-रोममें। क्या वचनामृत है! अनमोल- अनमोल वचन हैं, जिसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती। अगर उसको पान कर ले, .. चिंतन कर ले, वही सच्चा भक्त है, नहीं तो क्या है? सब सेवा करी, लेकिन आपके वचनोंको पालन करके एक तरफ बैठकरके अंतर मनन कर ले, तेरा कल्याण हो जायगा। वही सच्चा भक्त है। गुरुदेव कहेंगे कि मेरे मार्गमें आया, मेरा सच्चा भक्त है। एक बातको धारण करके ... एक-एक बोल... एक आया न? विकल्प हमारा पीछा नहीं छोडते। तो विकल्प तेरेको नहीं लगा, विकल्पको तू लगा है। तू विकल्पको छोड दे न। इतनी-सी बात। इतनेंमें सारा सार समा गया। ... छेदन हो गया। विकल्पका ज्ञायक हूँ, विकल्प मेरा स्वरूप नहीं है। धन्य हो!
मुमुक्षुः- हमारे कहते हैं कि जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि। मुमुक्षुः- मेरे रोम-रोममें समाया हुआ है, वचनामृतका एक-एक बोल। धन्य है! अगर एक बार उसने पढ लिया आत्म चिंतन-से एक बार मनन कर लिया, उसका कल्याण नहीं होवे ये बात बन सकती नहीं। .. मैं कहता हूँ ... वचनामृत पूरा- शुरू-से आखिर तक। अभिप्राय तेरा कहाँ पडा हुआ है? रुचिको पलट दे। तेरेको कहीं न लगे तो जा।
मुमुक्षुः- कहीं न रुचे तो अन्दर जा। मुमुक्षुः- विश्वका अदभुत तत्त्व तूं ही है। कौन कहनेवाला है? अदभुत तत्त्वको पहचानकरके, जिसको जानकरके जिन्होंने बता दिया कि विश्वका अदभुत तत्त्व तू ही है। सारा सार, जो देखो वह उसमें भरा है। निकालनेवाला होना चाहिये, खोजनेवाला होना चाहिये। और अपन नहीं खोजेंगे तो क्या फायदा? आपके बताये हुए मार्ग पर चलकर, एक सत्पुरुषको खोज ले और उसके चरणकमलमें सर्व अर्पण कर दे। तो तेरा कल्याण हो जायगा। धन्य हमारा भाग्य! ऐसे शब्द कहाँ मिलते थे? कौन जानता था? आज हमारा भाग्य खिल गया। आहाहा..!
जन-जनमें यह बात, आत्मा-आत्मा कौन जानता था? आज तो सरल मार्ग बता