२६ दिया। हलवा रख दिया सामने परोसकर, उठाकर खा ले। पर ऊतारना पडेगा। नहीं खाये तो ... अब तो ऊतार।
समाधानः- ... तीर्थंकर भगवान छद्मस्थ अवस्थामें होते हैं।
मुमुक्षुः- सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर ही होते हैं।
मुमुक्षुः- पहले ऐसा लिखा है कि श्रावक, सम्यग्दृष्टि, मुनिवर और बादमें लिखा है कि छद्मस्थ तीर्थंकर।
समाधानः- छद्मस्थ कहनेमें आता है। जबतक केवलज्ञान नहीं होता तबतक कहनेमें आता है। भगवानको कहनेमें आता है। अभी अधूरा ज्ञान होता है तबतक छद्मस्थ कहनेमें आता है। अरिहंत-अरिहंत सब अरिहंत कहलाते हैं, परन्तु तीर्थंकर भगवान विशेष पुण्यशाली होते हैं। इसलिये पुण्यवंत अरिहंत कहनेमें आता है। उनका प्रभावना उदय, उनका पुण्य विशेष होता है तीर्थंकर भगवानका। दूसरे अरिहंत भगवानके पुण्य होता है। उसमें तीर्थंकर भगवान सातिशय पुण्यशाली विशेष होते हैं। इसलिये पुण्यशाली अरिहंत कहनेमें आता है।
मुमुक्षुः- ... पात्रता। यह विशेष इसमें लिया है-निर्भ्रान्त दर्शनकी पगदण्डी पर। उसमें ऐसा लिखा है। गर्भित पात्रता है, वह ज्ञानी ही जान सकते हैं। तो हमें कैसे मालूम पडे?
समाधानः- गर्भित पात्रता-अन्दर अव्यक्त पात्रता हो। वह स्वयं न जान सके तो स्वयंको अपनी पात्रता प्रगट करनी। अन्दरमें स्वयं अपनेको जान सकता है कि मेरी पात्रता किस प्रकारकी है। अन्दर अव्यक्त पात्रता हो वह स्वयंको पकडमे न आये तो स्वयं अंतरकी जिज्ञासा, लगन तैयार करके स्वयं पुरुषार्थ करके पात्रता प्रगट करनी। अन्दर अव्यक्त हो वह सबको पकडमें आ जाय, ऐसा नहीं होता।
मुमुक्षुः- प्रगट हो जाय उसके बाद तो जानना कहाँ रहा? वह तो ज्ञात हो गया।
समाधानः- इतनी जिज्ञासा हो कि मेरी पात्रता किस जातकी है। मुझे क्यों मालूम नहीं पडती। तो पात्रता अन्दर-से प्रगट करनी।
मुमुक्षुः- तबतक हुयी नहीं है।
समाधानः- हाँ, तबतक नहीं हुयी है। स्वयं प्रगट करनी। उतनी अंतरमें स्वयंको भावना होती हो तो।
मुमुक्षुः- कोई-कोई ज्ञानिओंको, गर्भित पात्रताका ख्याल कोई-कोई ज्ञानियोंको आ जाता है। गर्भित पात्रताका ख्याल कोई-कोई ज्ञानियोंको आ जाता है।
समाधानः- आ जाय, उसकी अमुक जातकी लायकात देखकर ख्यालमें आ जाता