१६२ पर्याय गयी, द्रव्यदृष्टिके (जोरमें) स्वभावकी ओर (गयी)। अनादिसे परिणमता है, तो भी द्रव्यके आलम्बन बिना, द्रव्यके बिना पर्याय परिणमती ही नहीं। वह स्वतंत्र होनेके बावजूद द्रव्यके आश्रय बिना पर्याय परिणमती नहीं।
मुमुुक्षुः- जब आपने डोर कहा, पर्यायकी डोर द्रव्यके हाथमें है, यह बात इतनी सुन्दर थी।
समाधानः- परिणमना चाहे वैसी ही पर्याय परिणमती है। उसकी डोर उसके हाथमें ही है। द्रव्य ही निश्चयसे स्वतंत्र है, परन्तु पर्याय भी एक अंश है न, वह परिणमता रहता है। पर्याय परिणमती रहती है इसलिये उस अपेक्षासे उसे स्वतंत्र कहा। लेकिन पर्याय ऐसी स्वतंत्र नहीं है कि द्रव्यके आधार बिना, द्रव्यके डोर बिना, अपनेआप जैसे ठीक पडे वैसे परिणमन करे। ऐसी स्वतंत्रता उसे नहीं है। लेकिन वह एक अंश है और पर्याय एकके बाद एक, एकके बाद परिणमती रहती है, इसलिये पर्यायको उस अपेक्षासे स्वतंत्र कहनेमें आती है।
मुमुक्षुः- वास्तविकतासे तो द्रव्य स्वतंत्र है।
समाधानः- हाँ, वास्तविकतासे द्रव्य स्वतंत्र है।
मुमुक्षुः- पर्याय और द्रव्यका, दोनोंका अस्तिपना बताना हो तो इतना भेद करके..
समाधानः- हाँ, उतना भेद (होता है कि) पर्याय स्वतंत्र है। ज्ञानगुण हो तो ज्ञानमेंसे ज्ञानकी पर्याय आती है, दर्शनमेंसे दर्शनकी, चारित्रमेंसे चारित्रकी। चारित्रगुणमेंसे चारित्रकी पर्याय आती है। ऐसे जिसका जो स्वभाव है उस रूप पर्याय परिणमती है, इसप्रकार पर्याय भी एक स्वतंत्र परिणमती है। लेकिन उसकी डोर द्रव्यके हाथमें है।
मुमुक्षुः- पलटती है उसमें मैं ज्ञायक हूँ, इसप्रकार परिणामको पलटता है, तो उसमें कोई कर्तृत्व आता है?
समाधानः- कर्तृत्व नहीं आता है, स्वयं ज्ञायक है। उसमें पर्याय पलटती है। कर्ताबुद्धि नहीं होनी चाहिये। बाकी परिणमन, स्वयं परिणमता है। वह भी एक प्रकारकी उसकी क्रिया होती है। पर्यायकी भी क्रिया होती है।
मुमुक्षुः- वहाँ कर्ताबुद्धि नहीं है, परन्तु स्वयं करता है इसलिये उस अपेक्षासे स्वयं कर्ता है।
समाधानः- हाँ, कर्ता, क्रिया, कर्म। द्रव्यको कर्ता कहनेमें आता है। लेकिन वह पर्याय भी परिणमती है स्वतंत्र, इसलिये पर्यायका कर्ता पर्याय ऐसा (कहते हैं)। परन्तु पर्याय ऐसी स्वतंत्र नहीं है कि द्रव्यके आश्रय बिना, द्रव्यकी डोर बिना परिणमे। ऐसी स्वतंत्रता पर्यायमें नहीं है। (चाहे जैसे) पर्याय परिणमती रहे ऐसा नहीं है।
जो जिज्ञासु आत्मार्थी हो, उसे स्वयंकी भावना अनुसार कुछ होवे ही नहीं, ऐसा