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द्रव्य ही उसे कहते हैं कि जिसे किसीकी सहायताकी जरूरत न पडे। उसका नाम द्रव्य है। वह द्रव्य अनादिअनन्त स्वतःसिद्ध अकारण परिणमता है। वह उसका स्वभाव है। स्वयं अपना स्वभाव किसी भी प्रकार-से तोडता नहीं है। ऐसे तो परिणमता है, परन्तु विभावमें भी कर्मका निमित्तमात्र है। स्वयं परिणमता है। स्वभावमें पलटता है वह स्वयं-से पलटता है, स्वभाव तरफ भेदज्ञान करके। उसमें देव-गुरु-शास्त्र निमित्त होते हैं। परन्तु उपादान स्वयंका है।
वह अकारण पारिणामिक द्रव्य है कि जिसे कोई कारण लागू नहीं पडता। अभी तक जीव स्वभाव तरफ क्यों पलटता नहीं? वह उसका स्वयंका कारण है, किसीका कारण नहीं है। उसे कोई दूसरेका कारण लागू नहीं पडता। स्वयं अपने ही कारण- से विभावमें परिणमे, अपने कारण स्वभावमें परिणमे। ऐसा अकारण पारिणामिक द्रव्य है। ऐसा उसका परिणमन स्वभाव स्वतःसिद्ध है। कोई उसे परिणमन करवाता नहीं और किसी अन्य-से उसका नाश नहीं होता।