પરમ પારિણામિકભાવમાં ‘પારિણામિક’ શબ્દ પરિણામસૂચક લાગે છે, તો નિષ્ક્રિય ધ્રુવ સ્વભાવનું જે જાણપણું છે તેમાં પરિણામ છે ? 0 Play परम पारिणामिकभावमां ‘पारिणामिक’ शब्द परिणामसूचक लागे छे, तो निष्क्रिय ध्रुव स्वभावनुं जे जाणपणुं छे तेमां परिणाम छे ? 0 Play
વસ્તુનું બંધારણ પહેલા જાણવું જોઈએ તો બંધારણ વસ્તુનું કેવા પ્રકારનું છે ? 3:05 Play वस्तुनुं बंधारण पहेला जाणवुं जोईए तो बंधारण वस्तुनुं केवा प्रकारनुं छे ? 3:05 Play
કોઈપણ પર્યાય શુદ્ધ હોય કે અશુદ્ધ હોય તે ધ્રુવમાંથી નીકળતી નથી જો તેમાંથી નીકળતી હોય તો ધ્રુવ ખાલી થઈ જાય? તો પછી સ્વભાવ ઉપર દ્રષ્ટિ જાય તો શુદ્ધ પર્યાય પ્રગટે તેનું શું કારણ? 4:05 Play कोईपण पर्याय शुद्ध होय के अशुद्ध होय ते ध्रुवमांथी नीकळती नथी जो तेमांथी नीकळती होय तो ध्रुव खाली थई जाय? तो पछी स्वभाव उपर द्रष्टि जाय तो शुद्ध पर्याय प्रगटे तेनुं शुं कारण? 4:05 Play
....પરિણમવું એ તો સિદ્ધાંતિક વાત છે શુભાશુભભાવરૂપે અથવા શુદ્ધરૂપે પરિણમવું તેમાં જીવનો અમુક ગુણ નિમિત્ત બને જેમ કે જ્ઞાન-દર્શન? 6:35 Play ....परिणमवुं ए तो सिद्धांतिक वात छे शुभाशुभभावरूपे अथवा शुद्धरूपे परिणमवुं तेमां जीवनो अमुक गुण निमित्त बने जेम के ज्ञान-दर्शन? 6:35 Play
પ્રમાણના વિષયભૂત દ્રવ્ય લઈએ તો કથંચિત કુટસ્થ અને કથંચિત્ પરિણામી કહીએ પણ જે ધ્રુવત્વભાવ છે તેને કથંચિત કૂટસ્થ અને કથંચિત્ પરિણામી એમ કહેવાય? 9:40 Play प्रमाणना विषयभूत द्रव्य लईए तो कथंचित कुटस्थ अने कथंचित् परिणामी कहीए पण जे ध्रुवत्वभाव छे तेने कथंचित कूटस्थ अने कथंचित् परिणामी एम कहेवाय? 9:40 Play
રાગ-દ્વેષ આવે છે તે ન આવે તેનો ઉપાય બતાવશો? 13:15 Play राग-द्वेष आवे छे ते न आवे तेनो उपाय बतावशो? 13:15 Play
સ્વાઘ્યાય કરવા બેસીએ ત્યારે કંઈક મન પરોવાય પણ વચમાં બીજા વિકલ્પો આવે છે તે વિકલ્પો ન આવે તેનો ઉપાય શો? 14:20 Play स्वाघ्याय करवा बेसीए त्यारे कंईक मन परोवाय पण वचमां बीजा विकल्पो आवे छे ते विकल्पो न आवे तेनो उपाय शो? 14:20 Play
મુંઝવણનો ઉકેલ શું આ એક જ છે? 15:30 Play मुंझवणनो उकेल शुं आ एक ज छे? 15:30 Play
मुमुक्षुः- परमपारिणामिकभावमें पारिणामिक शब्द तो परिणाम सूचक लगता है।तो ध्रुव निष्क्रिय स्वभावरूप जानपना जो है, उसमें परिणाम माने क्या? जानपनामें परिणाम क्या?
समाधानः- अनादिअनन्त है। पारिणामिकभाव ... स्वयं स्वभावरूप परिणमता है।उसमें जो विभावकी क्रिया, निमित्तकी क्रियाओंका परिणमन नहीं है। परन्तु स्वयं निष्क्रिय (है), परिणामको सूचित करता है। निष्क्रिय अपने स्वभावको सदृश्य परिणाम-से जो टिकाये रखता है। परिणाम है, परन्तु वह परिणाम ऐसा परिणाम नहीं है कि जो परिणाम दूसरेके आधार-से या दूसरे-से परिणमे ऐसा परिणाम नहीं है, निष्क्रिय परिणाम है। वह परिणाम शब्द है, परन्तु मूल स्वभाव-से उसे कोई अपेक्षा-से निष्क्रिय कहनेमें आता है। निष्क्रिय परिणाम कहनेमें आता है।
मुमुक्षुः- कूटस्थ शब्द इसमें इसके साथ कैसे बिठाना?
समाधानः- कोई अपेक्षा-से उसे कूटस्थ कहनेमें आता है। पारिणामी स्वभाव है वह कार्यको सूचित करता है। इसलिये .. टिकाये रखता है। इसलिये वह ध्रुव है। और ध्रुव होने पर भी जो उत्पाद-व्ययरूप परिणमता है। ऐसे उत्पाद-व्यय और ध्रुव, तीनोंका सम्बन्ध है। तीनों अपेक्षायुक्त हैं। अकेला ध्रुव नहीं होता, अकेले उत्पाद- व्यय नहीं होते। उत्पाद किसका होता है? जो ध्रुव, जो है उसका उत्पाद है। व्यय भी जो नहीं है, उसका व्यय क्या? इसलिये उसकी पर्यायका व्यय होता है। उत्पाद भी जो है उसका उत्पाद होता है। इसलिये है, उसमें तो बीचमें सत तो साथमें आ जाता है। ध्रुव तो सत है।
जो नहीं है उसका उत्पाद नहीं होता। जो नहीं है उसका व्यय होता नहीं। जोहै उसमें कोई परिणामका उत्पाद और कोई परिणामका व्यय होता है। है उसका होता है। इसलिये ध्रुवता टिकाकर, उत्पाद और ध्रुवता टिकाकर व्यय होता है। जो असत- जो जगतमें नहीं है, उसका उत्पाद नहीं होता। जो नहीं है, उसका कहीं नाश नहीं है। जो सत है, उस सतका उत्पाद और जो है उसमें व्यय होता है। इसलिये उसमें ध्रुवमें उत्पाद-व्ययकी अपेक्षा साथमें है।