गौण) करनेमें आता है। परन्तु व्यवहारमें तो केवलज्ञानकी कैवल्य दशा, वीतराग सर्वज्ञदेव (हैं)। साधक दशा जिसने पुरुषार्थ करके प्रगट की, वह सब पूजनिक कहनेमें आता है। मुनि दशा पूजनिक कहनेमें आती है। अतः दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें ही होते हैं। अकेली दृष्टि हो और ज्ञान यदि विवेक न करे तो वह दृष्टि जूठी ठहरेगी।
दृष्टिका विषय ऐसा है कि एक पर, एकको विषय करे। और ज्ञान सब विवेक करे। और दृष्टि बिनाका ज्ञान भी यथार्थ नहीं है। दृष्टि मुख्य हो, परन्तु उसके साथ ज्ञान हो तो उन दोनोंका सम्बन्ध है। यदि अकेला होगा तो गलत होगा। दृष्टिमें कूटस्थ आया इसलिये वह सच्चा और ज्ञानमें कथंचित परिणामी और अपरिणामी आया, इसलिये वह जूठा, ऐसा नहीं है।
कूटस्थ तो (इसलिये कहते हैं कि), दृष्टि मुक्तिके मार्गमें मुख्य है इसलिये। तूने अनादि काल-से यह सच्चा और यह सच्चा, यह भी सच्चा और यह भी सच्चा, ऐसा किया और यथार्थ समझा नहीं, इसलिये उस प्रमाणको ऐसा कहनेमें आता है। परन्तु दृष्टिपूर्वकका जो प्रमाणज्ञान है वह तो यथार्थ है। दृष्टिने विषय किया अखण्डका, अखण्डकी दृष्टि बिना मुक्तिका मार्ग होता नहीं। परन्तु साथमें जो ज्ञान रहता है, वह दोनोंका- द्रव्य और पर्यायका विवेक करता है। इसलिये वह प्रमाण भी यथार्थ है। उसके पहलेका प्रमाण कोई ऐसा कहता हो कि निश्चय सच्चा और व्यवहार भी सच्चा, ऐसा करता हो तो वह यथार्थ नहीं है। परन्तु दृष्टिपूर्वकका ज्ञान है वह यथार्थ है।
मुमुक्षुः- राग-द्वेष होते हैं, वह न हो उसका उपाय बताईये।
समाधानः- राग-द्वेष न हो,.. पहले उसका भेदज्ञान करना पडता है। जबतक वह रागकी दशामें खडा है, उसकी रागकी रुचि कम हो जानी चाहिये। मेरा वीतरागी स्वभाव मैं जाननेवाला हूँ। ये राग मेरा स्वरूप नहीं है। और चैतन्यका ज्ञायक स्वभाव है वह मेरा स्वभाव है। ऐसे स्वभावको पहचानकर रागकी रुचि कम करे तो वह मन्द होता है। बाकी उसका नाश पहले नहीं होता, पहले उसका भेदज्ञान होता है कि ये राग मेरा स्वभाव नहीं है, मैं उससे भिन्न जाननेवाला, मैं वीतरागी स्वभाव हूँ। इसलिये उसे भिन्न करनेका प्रयत्न करे। भिन्न करनेका प्रयत्न करे तो वह मन्द होता है। पहले उसका भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करना कि मैं ज्ञायक हूँ और ये राग-द्वेष हैं। उसकी एकत्वबुद्धि तोडनेका प्रयत्न करना।
मुमुक्षुः- दूसरा प्रश्न है कि स्वाध्याय करने बैठे तो थोडी देर मन पिरोता है, परन्तु बीचमें दूसरे विकल्प आते हैं, तो वह विकल्प न आये उसका उपाय क्या है?
समाधानः- उसे बदलते रहना बारंबार, विकल्प आये उसे (बदलकर) बारंबार स्वाध्यायमें चित्त लगाना। अनादिका अभ्यास है इसलिये दूसरे विकल्प आ जाय तो