Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 248.

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ट्रेक-२४८ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- परम उपकारी, परम पवित्र आत्मा, परम पूज्य भगवती मातानी पवित्र सेवामां। हे भगवती माता! आ भरत सदाय आपना दर्शन करवा खूब-खूब उत्सुक रहता है। यह जीव आपके मुख-से धर्मके दो शब्द सुननेके लिये अत्यंत तरसता रहता है। आपकी मुलाकातके वक्त खडे होनेका मन नहीं होता। हमारा प्रेम अति भावावेशमें आपको दर्शा नहीं सकते। नेत्र अश्रु-से भर जाते हैं। इसलिये आज अत्यंत गदगदित होकर मेरे भावावेशको इस पत्र द्वारा दर्शाये बिना रह नहीं सकता।

पूज्य गुरुदेव द्वारा जो अपूर्व प्रेम ज्ञानी भगवंतोंके प्रति प्रगट हुआ है, वह अब हृदयके पातालको तोडकर बाहर आया है। लाचार हूँ, भगवंत! मैं लाचार हूँ। मैं कोई अवज्ञा, अविनय करता होऊँ तो हाथ जोडकर प्रथम ही क्षमायाचना करता हूँ।

ऐसे तो आश्चर्य जैसा है कि मन-से तो सदा ही आपको साक्षात दंडवत प्रणाम ही होते हैं। पूज्य गुरुदेवकी सातिशयता युक्त वाणी-से मोहकी केलेके वृक्षकी पुष्ट हुयी गाँठ इतनी कमजोर होने लगी है कि अहंकार, अभिमान, घमंड इत्यादि सब मेरेमें चूर-चूर हो रहे हैं। इसलिये तनकर चलनेकी शक्ति वहाँ सोनगढमें कहाँ है? ज्ञानियोंके चरणोंमें छोटे पिल्लकी भाँति लोट लूँ, ऐसे भाव निरंतर वेदनमें आते हैं। कमाल है, माता!

धन्य हो माता! चौदह ब्रह्माण्डके अनन्ता अनन्त जीव सुखके नाम पर जो सरासर दुःख भोगते हैं, ऐसेमें आप स्व ब्रह्माण्डमें आनन्दकी घूंट पी रहे हो। जो अनन्त जीव नहीं कर सके, उस कार्यको आपने सहज साध्य किया। पूज्य गुरुदेव तो कहते थे कि आपको ऐसी स्वरूपधारा वर्तती है कि यदि आपका पुरुषका देह होता तो भावलिंगी सन्त बनकर वनमें विचरते होते। अहो..! आपकी यह स्वानुभव दशाके प्रेमी, हमें अत्यंत प्रेम प्रगट होता है।

एक स्त्री पर्याय होनेके बावजूद गजब पुरुषार्थका प्रारंभ किया है। पुरुष नाम धारण करनेवाले हमको अत्यंत-अत्यंत धिक्कार उत्पन्न होता है कि ऐसा नाम धारण करनेके लायक हम वास्तवमें नहीं है। जगतकी रचना भी, माता! अहो! भगवती माता! कितनी विचित्र है कि जिन्हें अणुमात्र नहीं चाहिये, उनके आँगनमें पुदगलोंके ठाठकी रचना