Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1628 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-६)

४८ हो गयी है। त्रेसठ शलाका पुरुषोंको जगतका अलभ्य वैभव सहज ही प्राप्त होता है कि जो नियम-से मोक्ष जानेवाले हैं।

श्री तीर्थंकरके जन्मके समय रत्नोंकी वृष्टि सहज ही बरसती है। गजबका सिद्धान्त हुआ कि ये पुदगल जिन्हें नहीं चाहिये, वह उनके पास ही है। उनके सच्चे स्वामी तो समकिती भगवंत ही हैं। माता! हमारे पास जो धन-दौलत, वैभव जो कुछ भी है, वह सब आपका ही है, आपका ही है। हम पापी इस बातको समझते नहीं है और झहरीले नागकी भाँति धन-दौलतको हमारा समझकर, उसके मालिक बनकर रक्षा करनेकी कोशिष करते हैं। अरे..! पश्चातापसे भरे नेत्र-से आपके समक्ष क्षमा चाहता हूँ, क्षमा चाहता हूँ। इस बालकका सर्वस्व आपका है।

इसलिये मुमुक्षु जन आपको हीरे-रत्नसे वधाते हैं। अरेरे..! मैं तो आपको अनन्त कोहिनूर हीरे-से वधाऊँ तो भी कम है। मेरी शक्ति होती तो आपकी वाणी जहाँ भी खीरे वहाँ रत्नोंकी वृष्टि सदा करता रहता। ऐसे भाव आये बिना नहीं रहते। परन्तु पूज्य गुरुदेव द्वारा जाना है कि मेरी सम्यक रत्नकी पर्याय प्रगट करुं, तभी आपको सत्यरूपसे वधाने जैसा आनन्द होगा। अदभुत अदभुत बातें हैं।

इस सुवर्णपुरीकी ... निश्चय-व्यवहारकी परिपूर्ण सिद्धि है। सूक्ष्म भेदरूप बातें तो यहीं सुनने मिली है। जिसने भगवान आत्माको उपादेय माना है, लक्ष्यमें लिया है, जिसे संपूर्ण वीतरागता अपना ध्येय लगता है, उस मुमुक्षुको वीतरागके ऐसे प्रतिकोंके प्रति अदभुत प्रेम उत्पन्न होता है। अरे..! पागल हो जाते हैं।

नंदीश्वर द्वीपमें समकिती पैरमें घुँघरुं बान्धकर भगवान समक्ष नाच उठते हैं। हमें तो इस घोर कलिकालमें, गहनतम अन्धकारमें आप ही एक दीपक समान हों। भारतके एक कोने-से दूसरे कोने-में जाओ, अरे..! पूरी दुनिया फिर लो, आप जैसे ज्ञानी भगवन्त कहीं मिले ऐसा नहीं है। निमित्तकी इतनी विरलतामें आपको देखकर हम पागल- पागल हो जाते हैं। कोई अबूध जीव उसे व्यक्तिमोह भी कहते हैं। परन्तु हमारी यह परिणति विद्वत्तासे पारको प्राप्त हो ऐसा नहीं है। अनुभवप्रधान परिणति है। जो समझेगा वह भाग्यशाली होगा।

अरे..! ऐसे तो माता! समाजमें सिद्धान्तके भेद भी उत्पन्न होने लगे हैं। वस्तुको विपरीत रूपसे प्ररूपित की जाती है। हम सब मान छोडकर आप जैसे श्रुतकेवलीके समक्ष बैठें तो क्षणमात्रमें सब समझमें आ जाय। परन्तु प्रतिष्ठाका मोह और क्षयोपशमके अभिमानमें इस तरह सबका इकट्ठा होना मुश्किल है। परन्तु हमें तो यह बात समझमें आ गयी है कि सूईकी नोंक पर रहे .... असंख्यात शरीरमें-से मात्र एक शरीरके जीव भी मोक्षको प्राप्त नहीं होनेवाले हैं, ऐसेमें आपने अभूतपूर्व विरल ऐसे मोक्षमार्गको