Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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टिकाया है, यह कोई कम आश्चर्यकी बात है?

ऐसे निकृष्ट कालमें भावलिंगी संतोंके दर्शन भी जहाँ नहीं होते हैं, वहाँ आप एकमात्र ऐसे समकिती भगवंतको हम कैसे छोड सकते हैं? हम तो आपके चरणोंमें ही आयुष्य पूर्ण करनेकी इच्छा रखते हैं।

पूज्य गुरुदेवने कहा है कि तू तेरे भगवान आत्माकी शरण ले ले। वह भगवान आत्मा फिर एक समयमात्र भी विरह नहीं करवायेंगे। माता! वह भगवान आत्मा ग्रहण नहीं हो रहा है और हमारी उलझनका कोई पार नहीं है। कहीं रुचता नहीं है, हर जगह जहर-जहर लगता है। अरे..! महा भावलिंगी सन्त गजसुकुमाल पर तो अंगारेकी सिगडी मात्र चार-छः घण्टेके लिये होगी, हमारे सर पर तो इन विकल्पोंकी भट्ठी जल रही है, जलाती है, हैरान-परेशान करती है। हम वह गजसुकुमालकी सिगडी इच्छते हैं, परन्तु यह भट्ठी नहीं चाहिये, नहीं चाहिये। बचाओ उसके त्राससे, माता! बचाओ। ज्ञानी भगवंतके प्रति अपूर्व प्रेम प्रगट हुए बिना इस भट्ठीसे बचनेका उपाय प्राप्त नहीं होगा।

हमारी यह पामर दशा ही ऐसी सूचित करती है कि हमें आपके प्रति सच्ची भक्ति उत्पन्न नहीं हुयी है। धन्य हो वीतराग मार्ग! धन्य हो! शास्त्रमें मार्ग है परन्तु मर्म तो आप ज्ञानियोंके हृदयकमलमें विराजता है। सुवर्णपुरीके मुमुक्षु आप द्वारा प्रकाशित मर्मको प्राप्त हों, ऐसी भावना होती है। सन्त बिना अंतकी बातका अंत प्राप्त नहीं होता।

पूज्य गुरुदेव द्वारा मार्ग समझमें आनेके बाद यह मस्तक आप समकिती भगवंतको अर्पण हो गया। सच्चे देव-गुरु और धर्मके सिवाय प्राणान्त होने पर भी कहीं नमन हो सके ऐसा नहीं है। अरे..रे..! ऊपरका ३१ सागरोपमवाला देव आकर चक्रवर्ती जैसी ऋद्धि-सिद्ध दे तो भी कुछ नहीं हो सकता। क्योंकि आपके चरणोंमें नमा हुआ मस्तक कहीं और नहीं नमेगा।

भगवान कुन्दकुन्दाचार्यको आप मिले थे। भगवान त्रिलोकीना। सीमंधर भगवानकी भी आपने भेंट की थी। इन सब बातों-से नेत्र अश्रान्वित हो उठते हैं। इसलिये समयसार आदि शास्त्रोंके प्रति अपूर्व-अपूर्व प्रेम आता है। ऐसे अभूतपूर्व कर्ताका प्रमाण देकर हम पर जो अनन्त उपकार हुआ है, पूज्य गुरुदेवकी पहचान भी आपने ही करवायी कि यह तीर्थंकर द्रव्य है। हम पामर आपके अलावा यह बात कैसे जान पाते?

श्री तीर्थंकरके गमनमें देव एकके बाद एक कमलकी रचना करते हैं। हम मुमुक्षु आपके उपकारके बदलेमें आपके गमनके समय एकके बाद एक ... मुलायम पंथ बनाये तो भी कम है।

माता! लिखनेमात्र यह शब्द नहीं है। आपके परम उपकार-से भीगे हुये ये शब्द