Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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गये कि गुरुने क्या कहा था? औरत दाल दो रही थी। मेरे गुरुने ये कहा था, छिलका अलग और दाल अलग। ऐसे मासतुष-ये छिलका भिन्न और अन्दर (दाल भिन्न है)।

ऐसे आत्मा भिन्न है और ये विभाव जो रागादि हैं, वह सब छिलके हैं। उससे मैं भिन्न हूँ। ऐसा गुरुने कहा था। इस प्रकार आशय ग्रहण कर लिया। गुरुने जो शब्द कहे थे वह भी विस्मृत हो गये। परन्तु आशय ग्रहण किया कि मेरे गुरुने भेदज्ञान करनेको कहा था। राग भिन्न और आत्मा भिन्न। इसप्रकार अंतरमें मैं आत्मा भिन्न हूँ और ये विभाव भिन्न है, सब भिन्न है। ऐसा करके अंतरमें भेदज्ञान करके अंतरमें सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति कर लीन हो गये, स्वानुभूति प्रगट की। और अंतरमें इतने लीन हो गये कि उसीमें लीन होने-से केवलज्ञान प्रगट कर लिया। उसमें पढाईकी आवश्यकता नहीं है। प्रयोजनभूत तत्त्वको पहचाने उसमें पढाईकी आवश्यकता नहीं है।

भगवानका द्रव्य, भगवानके गुण। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्याय और मेरे द्रव्य-गुण- पर्याय। जैसे भगवानके द्रव्य-गुण-पर्याय हैं, वैसे ही मेरे हैं। इस प्रकार भगवानको पहचाने, वह स्वयंको पहचाने। और स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचानता है। मूल प्रयोजनभूत तत्त्वको पहचाने तो उसमें सब आ जाता है। एकको पहचानने-से सब ज्ञात हो जाता है। बाहरका सब जानने जाय और एकको नहीं जानता है तो कुछ नहीं जाना। एक आत्माको पहचाने तो उसमें सब ज्ञात हो जाता है।

मुमुक्षुः- शुभका विश्वास छोड, माने क्या? शुभका विश्वास छोडना उसका अर्थ क्या?

समाधानः- शुभमें-से मुझे धर्म होगा। शुभमें-से मुझे कुछ लाभ होगा, ऐसी जो मान्यता है, वह विश्वास छोड दे। शुभ-से धर्म नहीं होता, शुभ बीचमें आता है। परन्तु शुद्धात्मा जो आत्मा है उससे धर्म होता है। धर्म अपने स्वभावमें रहा है, विभावमें धर्म नहीं है। धर्म स्वभावमें-से (प्रगट होता है)। जो वस्तु है, उसमें-से धर्म प्रगट होता है। शुभमें-से धर्म प्रगट नहीं होता, इसलिये उसका विश्वास छोड दे। बीचमें शुभभावना आती है।

अंतर आत्माकी जहाँ रुचि प्रगट हो, उसे देव-गुरु-शास्त्रकी भक्ति, महिमा आती है। जिनेन्द्र देव पर भक्ति, गुरु पर भक्ति, गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया, गुरुदेव पर भक्ति, शास्त्र पर भक्ति आती है। शुभभावना आती है। परन्तु मेरा स्वभाव शुद्धात्मा, उस शुद्धात्माका स्वभाव और ये शुभभाव दोनोें भिन्न-भिन्न वस्तु है। ऐसी उसे श्रद्धा और रुचि होनी चाहिये। उसका विश्वास, उसमें सर्वस्वता नहीं मानता। परन्तु वह बीचमें आता है। देव- गुरु-शास्त्रकी भक्ति, महिमा बीचमें आये बिना नहीं रहती।

सम्यग्दर्शन हो तो भी देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और भक्ति होती है। और रुचिवानको