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आदि बीस भगवान और केवली भगवंत सर्वज्ञपने विचरते हैं। पूर्ण ज्ञान जिसे प्रगट होता है। मुनिदशामें जो पूर्ण साधना करते हैं, उन्हें केवलज्ञान प्रगट हुए बिना नहीं रहता। जिसकी साधना पूर्ण होती है, उसकी ज्ञानदशा भी पूर्ण हो जाती है।
आत्मा जब वीतराग होता है, तब पूर्ण स्वभाव प्रगट हो जाता है। अनन्त-अनन्त, जिसे कोई मर्यादा या सीमा नहीं होती। ऐसा अमर्यादित ज्ञान आत्मामें-से (प्रगट होता है) कि जो एक समयमें सब जान सकता है। स्वयंको जानता है और दूसरोंको भी जानता है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन प्रगट होने पूर्व तो सर्वज्ञको ओघे ओघे मानने जैसा लगता है।
समाधानः- ओघे ओघे अर्थात विचार-से जान सकता है। सम्यग्दर्शनमें तो वह यथार्थ प्रतीत करता है कि मैं सर्वज्ञ स्वभावी आत्मा ही हूँ और पूर्ण स्वभाव मेरे आत्माका है और वह प्रगट हो सकता है।
उसके पहले रुचिवाला भी विचार करके समझ सकता है। ओघे ओघे नहीं। जैसे आत्मा कोई अपूर्व वस्तु है। गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया। विचार-से ऐसा नक्की करता है कि आत्म स्वभाव कोई अलग है, सम्यग्दर्शन कोई अलग वस्तु है, ऐसे केवलज्ञानको भी वह विचार-से नक्की कर सकता है। ओघे ओघे नहीं, विचारसे, युक्तिसे, दलीलसे नक्की कर सकता है कि सर्वज्ञता जगतमें है।
मुमुक्षुः- विचार करने पर ऐसा बैठ सकता है?
समाधानः- हाँ, बैठ सकता है। शास्त्रमें दृष्टान्त आता है कि सर्वज्ञ नहीं है, ऐसा तू (किस आधार-से कहता है)? नहीं है, ऐसा कैसे नक्की किया? तुझे कोई सर्वज्ञता है? सर्वज्ञ है जगतमें।
सर्वज्ञ स्वभाव आत्माका है। जो ज्ञानस्वभावी आत्मा है, वह पूर्णको क्यों न जाने? जिसका स्वभाव ही जाननेका है, उसमें नहीं जानना आती ही नहीं। जो जाननेका स्वभाववान है, वह पूर्ण आराधना करे तो पूर्ण जानता है। उसमें नहीं जानता है, ऐसा आता ही नहीं। जो जाने वह पूर्ण जानता है। उसे सीमा, मर्यादा होती नहीं। सीमा नहीं होती, स्वभाव अमर्यादि है। जिसका जो स्वभाव हो, वह स्वभाव अमर्यादित होता है।
मुमुक्षुः- ... सर्वज्ञकी प्रतीत हो ऐसा है?
समाधानः- दर्शन करने-से प्रतीत हो वह अलग बात है। अभी सर्वज्ञके दर्शन, साक्षात दर्शन होना पंचकालमें मुश्किल है। जिनेन्द्र भगवानकी प्रतिमाका दर्शन है। साक्षात दर्शन, वह तो एक प्रतीतका कारण बने। परन्तु वह नहीं हो उस समय विचार, रुचिसे, विचारसे नक्की कर सकता है। भगवानके दर्शन, वह तो एक प्रतीतका कारण बनता है।
वह पुरुषार्थ करे तो भगवानका दर्शन तो कोई अपूर्व बात है। साक्षात सर्वज्ञदेव