६६ भगवानके दर्शन हो (अपूर्व है)। जो वीतराग हो गये हैं। जो जगत-से भिन्न, जिनकी ज्ञानदशा प्रगट हो गयी। वीतराग दशा, जिनकी मुद्रा अलग हो जाय, जिसकी .. अलग हो जाय, जिसकी वाणी अलग हो जाय, जो जगत-से अलग ही हैं। उनके दर्शन तो कोई अपूर्व वस्तु है। वह तो प्रतीतका कारण बनता है। वीतराग दशा, जो अंतर आत्मामें परिणमती है, जिन्हें बाहर देखनेका कुछ नहीं है। जिनकी मुद्रा अलग, जिनकी वाणी अभेद ॐ ध्वनि निकलती है। जिनकी चाल अलग हो जाती है। सबकुछ अलग। भगवान जगत-से न्यारे हो जाते हैं।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- राग हो इसलिये विचार आये। जो बनना होता है, वहाँ कोई उपाय नहीं है। जो बनना होता है वह बनता है। ऐसा हो कि ऐसा किया होता तो? ... परन्तु आयुष्य उस प्रकार पूर्ण होनेवाला था। उसमें किसीका उपाय कुछ काम नहीं आता। कोई चाहे जो करे। आयुष्य हो तो किसी भी प्रकार-से बच जाता है और यदि न हो तो किसीकी होशियारी कहीं काम नहीं आती।
मुमुक्षुः- यहाँ आकर बहुत समाधान हो गया।
समाधानः- (समाधान) किये बिना छूटकारा नहीं है। गुरुदेवने कहा है वही मार्ग ग्रहण करना। गुरुदेवने जो उपदेश दिया है, वही ग्रहण करने जैसा है। गुरुदेवने जो उपदेशकी जमावट की है, वह याद करने जैसा है।
समाधानः- ... ये जैनधर्म, जिनेन्द्र भगवानके .... इससे तो राजपदवी नहीं होती तो अच्छा था। .... भगवानका स्तोत्र आता है (उसमें आता है कि) जैनधर्मके बिना मैं जैनधर्म विहीन... जैनधर्म विहीन मेरा जीवन नहीं होता। धर्म तो मेरे हृदयमें हो। धर्म बिनाका जीवन तो ... जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्रकी भक्ति, भगवानके उत्सव, गुरुके उत्सव, शास्त्रका स्वाध्याय, वही जीवनका कर्तव्य है। और अन्दर आत्मा, आत्माका रटन, अध्यात्मकी बात, आत्माकी बातें, ऐसी अपूर्व बात, उसका स्मरण। वही जीवनका कर्तव्य है। सच्चा तो वह है।
बाकी सब बने, परन्तु वह सब भूलने जैसा है। अचानक बने इसलिये लगे, राग हो उतना, परन्तु भूलने जैसा है। राग हो इसलिये लगे। भाईको, बहनको सबको लगे, परन्तु बदलने जैसा है। शान्ति रखने जैसा है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- .. उसे कोई परिचय नहीं है, इसलिये अन्दर समाधान करनेकी शक्ति नहीं होती। गुरुका आश्रय और देवका आश्रय तो बडा आश्रय है। ... इसलिये अन्दर- से समाधान करनेका बल नहीं आया। ... कहाँ जाना? वहाँ कहीं सुख पडा है?