Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1659 of 1906

 

ट्रेक-

२५२

७९

अन्दर चैतन्य एक स्वरूप आत्मा है, उसमें स्थिर हो जाना। उसकी प्रतीत, उसका ज्ञान, उसकी उसे यदि अपूर्वता लगे तो उसमें-से प्रगट हुए बिना नहीं रहता। अंतरमें जाने-से उसकी स्वभाव परिणति-स्वभाव क्रिया प्रगट होती है। परन्तु बाह्यकी प्रवृत्तिका और बाह्य विकल्प प्रवृत्तिका उसे रस लग गया है। उसमें एकत्वबुद्धि हो गयी है, उसमें-से वह छूट नहीं सकता है। कर्ताबुद्धिमें-से ज्ञायक होना, ज्ञायकता-ज्ञायकरूप परिणमन करना, वह उसे पुरुषार्थ करके सहजरूप करना मुश्किल हो गया है।

समाधानः- ... अनुभूतिको (गुरुदेवने) स्पष्ट करके बता दिया है। समयसारमें विभिन्न प्रकार-से मुक्तिका मार्ग प्रकाशित किया है। आचार्यदेव कहते हैं, मुझे अंतरमें-से वैभव प्रगट हुआ है, भगवानके पास-से, गुरुके पाससे, वह मैं सबको कहता हूँ। विभिन्न प्रकार-से (कहा), गुरुदेवने उसे स्पष्ट किया। नहीं तो कोई समयसारको समझता नहीं था। ज्ञायक हो जा। भेदज्ञान प्रगट कर। अबद्धस्पृष्टमें तू अकेले आत्माको ग्रहण कर। इस प्रकार विभिन्न प्रकार-से मुक्तिका मार्ग, स्वानुभूतिका मार्ग आचार्यदेवने कहा और गुरुदेवने स्पष्टि किया।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!