Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 253.

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अमृत वाणी (भाग-६)

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ट्रेक-२५३ (audio) (View topics)

समाधानः- .. पलटना तो स्वयंको (पडता है), परिणति स्वयंको पलटनी है। अपनी ओर आना, स्वसन्मुख होना, अपनी ओर दृष्टि करनी, अपनी ओर ज्ञान और अपनी ओर लीनता करनी, वह स्वयंको ही करना है, स्वयंको हो पलटना है।

मुमुक्षुः- उसका कोई क्रम, विधि?

समाधानः- विधि और क्रम एक ही है। उसकी लगनी, उसकी महिमा। गुरुदेवने जो मार्ग बताया उसे अंतर-से यथार्थ समझना, यथार्थ ज्ञान करना। गुरुदेवका क्या आशय था? स्वभाव ग्रहण करनेका प्रयत्न करना।

मुमुक्षुः- स्वरूपकी महिमा नहीं आनेका कारण उपयोग उतना अंतर तरफ मुडता नहीं होगा और पर विषयमें रुचि है, इसलिये नहीं आती होगी?

समाधानः- रुचि पर तरफ जाती है, अंतरमें परकी महिमा है। अपनी स्वकी महिमा कम है और दूसरेकी महिमा लगती है। स्व तरफ प्रयत्न नहीं जाता है। प्रमाद है, महिमा कम है, रुचि कम है। उसे जरूरत लगे तो चाहे जैसे भी वह प्रयत्न किये बिना नहीं रहता। मुझे यह करना ही है (ऐसा हो) तो स्वयं अंतरमें-से पलटे बिना रहता ही नहीं। परन्तु उतनी स्वयंकी मन्दता है इसलिये पलटता नहीं है।

मुमुक्षुः- मन्दतामें-से तीव्रता होनेके लिये भी स्वयं उसकी रुचि बढाये। रुचि बढानेके लिये क्या करना?

समाधानः- स्वयं ही रुचि (करे कि) स्वभावमें ही सर्वस्व है, बाहर कहीं नहीं है। जो अनन्त भरा है वह स्वभावमें है। बाहर-से कुछ नहीं आता। बाहर लेने जाता है, लेकिन बाहर-से कुछ प्राप्त नहीं होता। जिसमें भरा है, जिसमें स्वभाव भरा है उसमें-से प्रगट होता है। जिसमें है उसमें-से प्रगट होता है। जिसमें अपना अस्तित्व है, उसमें सब है। उसमें-से ही प्रगट होगा। ऐसा स्वयं दृढ निर्णय करे। ऐसी दृढ प्रतीत करे तो अपनी तरफ अपना पुरुषार्थ झुकता है।

अनन्त काल-से बाहर-से प्राप्त करनेके लिये व्यर्थ प्रयत्न किये, क्रियाएँ की, सब किया। शास्त्रमें आता है न? व्रत, नियम धारे, तप, शील आदरे परन्तु परमार्थ-से बाह्य है इसलिये स्वयंको मोक्ष ... सब किया। मुनिव्रत धारे, सब किया परन्तु अंतरमें पलटा