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है। सब स्थूल-स्थूल। उपवास करना हो तो कर दे, बाहर-से महेनत करनी हो तो वह करनेको तैयार है, परन्तु अंतरमें दूसरा कुछ नहीं करना है, दृष्टि बदलकर निज चैतन्यको ग्रहण करना है, वह मुश्किल पड जाता है। उपयोग सूक्ष्म करके, सूक्ष्म परिणति करके अंतरमें जाना मुश्किल हो गया है। उसमें उसका अनन्त काल चला गया। दिशा नहीं बदलता है।
मुमुक्षुः- एक दृष्टि बदलनेमें अनन्त परावर्तन हो गये।
समाधानः- हाँ, अनन्त परावर्तन किये।
मुमुक्षुः- इतना किया तो भी उसे दृष्टि बदलना नहीं आया।
समाधानः- हाँ, दृष्टि बदलना नहीं आया। शुभभावकी रुचिमें कहीं-कहीं अटक जाता है। शुभभाव-से कुछ लाभ हो, गहरी-गहरी रुचिमें, कोई प्रवृत्तिके रसमें, कोई क्रियाके रसमें, बिना प्रवृत्ति कैसे रहना? विकल्प बिना कैसे रहना? ऐसे कहीं-कहीं रुचिमें अटक जाता है। परन्तु अंतरमें दृष्टि नहीं बदलता है।
मुमुक्षुः- इतना सरल मार्ग आप बताते हो, इतना सरल बताते हो कि ऐसा होता है कि इतना आसान है? इतना आसान है? और इतना काल ऐसे ही (व्यतीत कर दिया)।
.. बोलमें आपने फरमाया है कि पूज्य गुरुदेवके वचनामृतका विचारका प्रयोग करना। विचारका प्रयोग, उसका अर्थ क्या?
समाधानः- गुरुदेवके वचन...?
मुमुक्षुः- वचनामृतके विचारका प्रयोग करना।
समाधानः- गुरुदेव जो कहते हैं, गुरुदेवकी जो वाणी है, गुरुदेवने जो वचन कहे, गुरुदेवने जो उपदेश दिया उसे तू अन्दर ऊतार, प्रयोग करका (अर्थ यह है)। गुरुदेव जो उपदेश देकर मार्ग बताते हैं, जो गुरुदेवके वचन है, गुरुदेवने जो उपदेश दिया और गुरुदेवने जो आज्ञा की हो, उसका तू अन्दर प्रयोग कर अर्थात तू तेरे पुरुषार्थमें ऊतार। तो तुझे परिणति प्रगट होगी।
गुरुदेव जो कहते हैं उसे मात्र सुन लेना, ऐसे नहीं। परन्तु उसका तू अंतरमें प्रयोग कर। गुरुदेवने ऐसा कहा कि तू भिन्न शुद्धात्मा है। ये शुभाशुभ भाव-से भिन्न अन्दर चैतन्य है, ये जो गुरुदेवने उपदेश दिया, उस अनुसार तू प्रयोग कर, उसका पुरुषार्थ कर। अन्दर तेरी परिणतिमें ऊतार।
मुमुक्षुः- इसे श्रद्धाका प्रयोग कहें या चारित्रका भी?
समाधानः- श्रद्धाका प्रयोग है। अभी उसने विकल्प-से श्रद्धा की है। अंतरमें यथार्थ श्रद्धा कब कहे? कि जब न्यारी परिणति हो तो श्रद्धाका प्रयोग (कहे)। चारित्रका